पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लखनअुपर हमला? क्या बात है? जैसे अभी लडाअी शुरु हो गयी हो,रक्तसागर अुछले न हो,सारे सालभर अवध में यह कुछ नहीं हुआ क्या? सो, १३ जून को, होप ग्रटने क्रांतिकारियोंपर अचानक धावा बोल दिया, जो लखनअु के पास नवाबगंज में जमा थे। गोरे और काले सिपाहियों के नेतृत्व में जो अचानक हमला किया उस से असावधान क्रांतिकारी तितर बितर हो जाते-किन्तु सिपाहियो! ठहरो! मौलवी की हत्या को अभी अेक सप्ताह भी नही बीता है-सो, ठहरो! सिपाहियोंने, अैसी विचित्र दशा में भी, डट कर लडने की सिद्धता की। और देखो! अन्य किसी जगह न मिलने वाली अद्भुत वीरता का परिचय क्रांतिकारियों ने यहाँ दिया। शत्रु भी अुस से प्रभावित हो जायगा। होप ग्रट लिखता है:- फिर भी अुनके हमले बडे जोरदार थे और अुन्हे विफल करने के लिये हमें बहुत कडी मेहनत करनी पडी। बडे दृढ और साहसी जमींदार वीरों ने हमारी पिछाडी पर दो तोपों से हमला किया। मैंने भारत में कअी लडाइयाँ देखी है और 'जीतेंगे या मरेंगे' की आन से लडनेवाले सूरमाओ को भी देखा है; किन्तु अिन जमींदारों की सी असाधारण वीरता मैंने शायद ही देखी है। पहले पहल उन्होंने हाडसन के रिसाले पर हमला किया और अुसे तितर बितर कर दिया और अुनकी दो तोपों को भी विचलित कर दिया। तब मैंने सातवीं हजार पलटन के दस्तोंको आगे बढने की आज्ञा दी; अुनके साथ चार तोपें थी, जो क्रांतिकारियों से केवल ५०० गज के फासले पर थीं और आग बरसा रही थी। क्रांतिकारी हाँसिया से काटे भुट्टों की तरह गिर रहे थे। एक मोटे आदमी ने निडर होकर दो झण्डे अपनी तोपों के पास गाड दिये, जो वहा डट जाने का अिशारा था। किन्तु हमारी तोपों की मार अितनी भयंकर थी, कि जो भी अुन तोपों के पास आता वह मारा जाता। हमारी सहायता के लिये और दो दस्ते आये, जिससे क्रांतिकरियों को हटाना पड़ा़़़़़़ अुन दो तोपों के पास १२५ लाशों का ढेर लगा था। तीन घंटे बाद हमारी जीत रही।*