पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५३७

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अध्याय १ ला] ४९३ [ सरसरी दृष्टिले www राजामहाराजाओं के दत्तक गोद लेने का अधिकार मान लिया गया। झिंग्लैंड की महारानी के अस घोषणापत्र में यह अलग अभिवचन दिया गया था, कि जनता के धार्मिक अधिकारों तथा रूढियों में तनिक भी हस्तक्षेप नहीं. किया जायगा और अपर्युक्त सभी वचन पूर्णतया पालन किये जायेंगे। आमे कहा गया था, “ आस्ट मिडिया कंपनी के कार्य काल में नागरी तथा सैनिकी महकमों के भिन्न भिन्न पदों पर काम करनेवाले आज के नौकरों. को हम अन्ही पदों तथा अधिकारों पर रखने की प्रतिज्ञा करते हैं; हॉ, यह सब कुछ हमारी अिच्छा पर तथा आगामी नियम निबंधों पर निर्भर रहेगा।" "देशी नरेशों के लिये प्रकट किया जाता है, कि भीस्ट अिंडिया' कंपनी के साथ अन्हों मे जो संधियों या ठहराव किये होंगे वे हमें भी अक्षर अक्षर मंजूर है; असपर पूरी तरह अमल करने को हम राजी हैं। हॉ, नरेशों को चाहिये, कि वे अस पर अमल कर आपसी सहयोग की चेष्टा करें। "अिस समय जो है, अस से अधिक प्रदेश जीत कर अस पर राज करने का हमारा मिरादा नहीं है, और, जिस तरह हमारे सार्वभौमत्व के अधिकारों तथा हमारे मावहत प्रदेशों पर हम किसी तरह का, तथा किसी का, निम्नलिखित सब जानकारी श्री. रसेल के मान डीन (लंदन टामिम्स के संपादक) को लिखे व्यक्तिगत पत्र में है। यह पम डीन की जीवनी में शामिल न होता तो लोगों को कभी न मालूम होता । पत्र यों है:-१८५९ के अन्त में डब्ल्यु अच. रसेल लॉर्ड क्लाबिड के साथ था। प्रधान सेनापतिपर लिखे अपने पत्र में, मिलाहाबाद के अपने मकान-मालिक-मेक अग्लो अिडियन जनरल मचैट के विषयमें लिखते हुमे लॉर्ड क्लाबिड कहता है:-- तुम्हें ठीक पता है असने क्या किया ? नहीं। अच्छा, जब विद्रोह फूट पड़ा तब देशी बेपारियों का असपर काफी ऋण था । असे स्पेशल कमिशनर बनाया गया और सबने पहला काम असने किया, अपने सभी साहुकारों को फॉसी. चढाना।