पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५३९

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अध्याय १ ला] ४९५ [सरसरी दृष्टिसे क्या नयी बात कही ? भरतपुर के राजा को कंपनी ने वचन दिया, कि असे अपने पुत्र के समान माना जायगा और प्रत्यक्ष में अस का सारा राज हडप लिया गया। लाहौर नरेश (दिलीपसिह ) को लंदन में बंदी रख छोडा जो कभी यहाँ लाया नहीं जाता। नवाब शमसुद्दीन खाँ को ओक हाथ से फॉसीपर लटकाया गया और दूसरे हाय से असे सलाम करते अिन अग्रेजों को लज्जा न मायी ! सातारे के छत्रपति के पुणे के पेशवा को बंदी बनाया और मरते दमतक बितर में असे पैन्शन चढवाते रहे । बनारस नरेश को आगरे में बंदी बना रखा । बिहार, झुडीसा, बगाल के नरेश या जागीरदारों को तो मटियामेट कर डाला गया। बकाया वेतन बॉटने के बहाने अवघ का पुरातन मौरूसी धन सब का सब हडप लिया। हॉ, संधी के ७ वें परिच्छेद में प्रतिज्ञा लिख दी कि अब आगे चलकर कुछ नहीं लेंगे। जिस दशा में जो कंपनी ने किया सुसी को मंजूर करने की बात मिग्लैंड की रानी करती हो तो पहले तथा आज की स्थिति में भेद क्या हुआ ? ये तो सब पुरानी बातें है। किन्तु अभी अभी प्रतिज्ञापूर्वक लिखी सधि-पत्र की शता को ताकपर रख कर और हमारे लाखों रुपयों का ऋण अस के सिरपर होते हुओ भी कंपनी को ढूंढने पर भी कोसी बहाना न मिला तो 'राजकर्ता का और प्रजा का असंतोषा यह झूठा कारण बता कर हमारी अपरपार मताओं तथा करोडों के 'प्रदेश को साफ हडप लिया ! यदि हमारे प्रजाजन पहले के नवाब वाजिदअली शाह के कार्यकाल में असतुष्ट थे, तो फिर अब हमारे कार्य काल में प्रजा पूरी संतुष्ठ और सुखी होने का क्या कारण है । राजनिष्ठा और प्रेम जितना में मिल रहा है वैसा शायद ही किसी राजा को असकी प्रजाने दिखाया हो ! अिस दशा में हमारा प्रात हमें क्यों कर नहीं लौटाया जा रहा है अग्लैंडवालीने और कहा है, कि अधिक प्रदेश जीत कर असपर राज करने की असे अिच्छा नहीं-फिर भी रियासतों पर दखल करना कम नहीं होता! असने यदि पूरा शासन अपने हाथ में ले लिया हो, तो फिर हमारी 'मजाने अपनी अिच्छा साफ प्रकट करनेपर भी अब तक हमारा राज हमें क्यों 'कर नहीं लौटाया जाता?" .