पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५४०

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अस्थायी शान्ति] ४९६ [चौथा खंड " आज तक कभी सुना नहीं गया कि कोमी रानी या राजा विद्रोह के लिग सारी सेना या सपूर्ण राष्ट्र को शिक्षा देती है। सब को क्षमा किया जागा; क्यों कि, समूची सेना को तथा सभी भारतियों को दण्ड देना समझदारों को कभी घमंद नहीं गायगा । अन्हे यह भी मालूम है, कि जनतक 'दण्ड ' शब्द सुनाया जाता हो तबतक असंतोष और विद्रोह कभी शान्त नहीं होते । कहावत प्रसिद्ध है; मरता क्या न करता! मरी मुगी आगसे थोडे ही डरती है ? “भिंग्लैंडवाली की घोषणामें यह भी कहा गया है, कि जिन्होंने विद्रोह किया या असे प्रोत्साहन दिया अन को प्राणदान दिया जायगा, किन्तु अनकी जॉच कर कुछ दण्ड भी दिया जायगा । और फिर जिन्होंने स्वयं हत्या की है या असकी सहायता की है, केवल अन्दी इत्यारों को छोड, सब को क्षमा घोषित की जायगी। अब अिसे देख मेक गॅवार भी ताड सकता है, कि चाहे अपराधी हो या निरपराधी कोमी नहीं बच पायगा; बचना असम्भव है। ग्लैिंडवाली का घोषणापत्र देखकर हमारे प्रजाजनों के लिअ हमारा जी मिना छटपटीये कैसे रह सकता है ! क्यों कि, यह घोषणापत्र तो ज्वलन्त देष भाव का बढ़िया प्रदर्शन है ! मिसी से इम अब स्पष्ट आज्ञा देते हैं, कि गाँव के मुखिया के नाते जो लोग मूर्खता से विटिशों के सामने पेश हुमे हों, वे १ जनवरी १८५९ के पहले तुरन्त हमारे शिविर में अपस्थित हो जायें । अर्थात् अनका अपराध निश्चित क्षमा कर दिया जायगा । हमारी जिस घोषणापर विश्वास कर भारतीय नरेश कितने दयालु और अदार होते हैं जिसे ध्यानमें रखा जाय । सहस सहस्र लोगोंने सिसका अनुभव किया है। लाखों लोगोंने यह सुन रखा है। हाँ, यह कभी किसी ने सुना भी नहीं कि अंग्रेजोंने किसीको क्षमा कर दिया शे।" “शान्ति प्रस्थापित होने पर लोगों की मुखसुविधा में वृद्धि करने के लिअ नी राडकें बनाने; नयी नहरें खोदने आदि सार्वजनिक कल्याण के काम हाथ धरने की बात भिंग्लैडवाली ने की है। अस पर भी गौर करना चाहिये।