पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५४५

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अध्याय १ ला] ५०१ [सरसरी दृष्टि से १८५६ के अन्यायों की चिट से लोगों का मन फौलादसा कठोर बनता और अनके निश्चय को और दृढ बना देता। कभी कभी ठीक समय पर भाग जाते , मिस आशा से, कि फिर किसी दिन विजय की सम्भावना दीख पडते ही संघर्ष शुरू करें । निदान, लॉर्ड क्लाअिडने अवध पर अन्तिम घावे का तूफान मचा दिया और शेष सैनिकों को नेपाल के जगलों में आसरा ढूँढने पर मजबूर किया, तब अन्होंने शरण की अपेक्षा भूखों मरना पसद किया। किसान, तालुकदार, जमींदार, व्यापारी सबने, दीर्घकालिक संघर्ष के बाद, असका अन्त देख कर हार मान ली ।* SINE

  • मॅलेसनकृत भिंडियन म्यूटिनी खण्ड ५, पृ. २०७.