पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५४६

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२० जून १८५८ को ग्वालियर के रणमैदान मे जो भिडन्त हुइ उस मे झान्सीवाली रानी लक्ष्मीबाई रवेत रही। इस तरह अंग्रेजों का एक कट्ट्र शत्रु सदा के लिए कम हुआ। किन्तु अंग्रेजों के और एक कट्टर शत्रु ने, जो युद्धतन्त्र में रानी से भी अधिक मॅजा हुआ था, मैदान से यशस्वी पीछेहट से अंग्रेजों को झॉसा दिया था। ग्वालियर से वह २० जून को गायब हो गया। फिर जावरा और अलीपूर से दिनांक २२ को अंग्रेजों के हाथों से छटक गया-किन्तु कहां?

    थोडे ही समय मे सारे मध्यभारत भर मे जंगलों, नदियों, पहाड़ों, उपत्यकाओ, गांवों  एवं नगरो से भीषण रणगजॅनाऐं बुलन्द हुई; और इस स्थान से 'तात्य टोपे,तात्य टोपे' का घोष उठने लगा।
    क्यो कि , शिकारियो के बरछे सब ओर से उठ जाने से यह मराठा शेर मध्यभारत के जंगलों मे घुसा था। ग्वालियर के मैदान मे रानी लक्ष्मीबाई खेत रहने से, मानो, उसका दाहिना हाथ ही गिर पडा। उनके हारो के बोझ से क्रांति लगभग दब चुकी थी। नानासाहब से वह हमेशा के लिए बिछुड गया था । भारतिय पिछुओ ही की सहायता से अंग्रेज़ी सत्ता अब भारत मे अजेय होने की शेखी वधार रही थी। न 'तात्य के पास तोपें, न