पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५४७

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अध्याय २ रा] ५०३ [पूणाहुति आवश्यक सेना रही थी, न असे प्राप्त करने की आशा भी। फिर भी अंग्रेजों को परेशान करनेवाले तथा पराजय को भी लज्जित करनेवाले अिस बॉके वीर ने अपना झण्डा नीचे नहीं झुकाया था। शत्रु के आगे झण्डा झुकाना ? नहीं, कदापि नहीं ! क्यों कि, अिमी जरीपटके (मण्डे) का डंडा जैसे वृक्ष से बनाया गया है, कि असे कभी विदेशी तोड दें तो शायद टूट जायगा; किन्तु अन के आगे झुकेगा नहीं कभी नहीं ! गवालियर, जावरा और अलीपुर की हारों के बाद बची हुी सेना के साथ तात्या टोपे तथा रावसाहब पेशवा सारमथुरा नामक गाँव में गये । अन की युद्ध की योजना अब तीन महत्वपूर्ण सिद्धान्तोंपर खडी थी-(१) अग्रेजी सेना से किसी मैदान में भिडन्त न की जाय; (२) असरक्षित पांतों में वृकयुद्ध की नीति से छापे मारे जाय; (३) मार्ग में जो रियासत मिलेगी अस से युद्ध सामग्री, धन और सेना अगाई जायें; क्यों कि, अिस तीसरे सिद्धान्त के बिना अपर्युक्त दोनों सिद्धान्त लूले पड जायेंगे । अत्तर तथा मध्यभारत में लगभग हर मुकाम पर संस्थान है। हर अंक के पास साल भर के लिअ आवश्यक रसद तथा शस्त्रास्त्र जमा किये रहते हैं और देश की रक्षा में असे लगाना अन का प्रथम कर्तव्य है। १८५७ की क्रांति में जनता के बलवा करने की मांग को, अिन्ही नरेशों ने अपने व्यक्तिगत पापी स्वार्थ के लिओ ठुकरा कर प्रकटरूप से क्राति की सहायता न की। जिन रियामतों में व्यर्थ का संग्रह किया हुआ गल्ला पडा हो, तब स्वदेश के सैनिक क्यों कर भूखों मरें। सो, मिन विश्वास. घाती नरेशों से आवश्यक सहाय हथियाने के लिअ तात्या टोपे और रावसाहब ने बड़ी सुदर योजना बनायो । जिस तरीके से देश की सेना को खिलाने तथा असे लडती रखने में जनता पर कोसी बोझ न पडा। अिन नरेशों के पास नगण्य सेना होती थी, तब अन पर यह युद्ध-कर लादने का काम कठिन न था और रियासते पास पास होने से सेना के साथ सामग्री ढोने का कष्ट भी न करना पड़ता। मॉग करते ही ये नरेश मान लें, तो अच्छा ही था, नहीं तो अन्हे मजबूर करने से काम बन जाता ! बस ।