पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५४८

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अस्थायी शान्ति ] ५०४ [चौथा खंड हाँ, तो अपर्युक्त तीन बातों पर तात्या टोपे ने अपनी आगामी लडाश्री का कार्यक्रम रचा था। अिस संयर्ष को चालू रखने में तात्या का अन्तिम अद्देश्य यही था, कि कूच करते रहना और सुनहला अवसर पात ही नर्मदा पार हो कर मराठा शेर को अपने घर के पहाडों और जंगलों में पहुंचा देना; जहाँ अंग्रेजों का ध्येय था, नर्मदा पार करने का अवसर तो दूर, किन्तु नर्मदा के पास भी तात्या को फटकने न देना । दोनों में यह चढापरी चालू हुी। पहले तात्या की दृष्टि भरतपुर पर थी, किन्तु प्रबल अंग्रेजी सेना वहाँ पहुंचने की खबर पाते ही असने अपना रुख जयपुर की ओर मोडा। जयपुर की राजसभा में तात्या के सहानुभूतिक की लोग थे । जनता और सैनिकों का झकाव भी असी की ओर था। सो, तात्या ने जयपुर को आदमी भेज कर अपने हितुओं को सिद्ध रहने की पूर्वसूचना दी; किन्तु अंग्रेजों के कानों में यह भनक पड़ी और तुरन्त अन की सेना नसीराबाद से जयपुर को चल पड़ी। जयपुर को यह बनाव देख कर तात्या दक्षिण की ओर मुडा। यहाँ कर्नल होम्स ने तात्या का पीछा किया। तात्या टोपे ने बड़ी चतुरता से अस को झांसा दिया और वह टॉक रियासत पर चढ गया। नवाब स्वयं सुर• क्षित नगर में बैठा रहा और तात्या का सामना करने के लिये कुछ सैनिकों को चार तोपों के साथ नगर के बाहर भेज दिया । अब भीषण लहामी छिड जाती, किन्तु टॉक के सैनिकों ने तात्या के सैनिकों को गले लगाया; अपनी तो तात्या को दे दी । जिस तरह फिर से नयी तोपें, सेना और सामग्री के साथ निश्चयपूर्वक दक्षिण की और कूच किया। वह ठेठ जिंद्रगढ तक पहुँचा और कुछ आराम किया । अस के पीछे होम्स की सेना और अक पासे पर राजपूताने से रोबर्टस् आ रहे थे। जिस समय मूसलाधार वर्षी शे रही थी। सामने चम्बल भरी पड़ी थी। पीछे से भयंकर शत्रु-सेना की, तथा सामने चम्बल में, बाढ थी ! अिस से अत्तर-पूरब को मुड कर वह बुदी पहुँचा । वहाँ से बडी चतुरता से शत्र को भुलाता हुआ, पहले से क्रांति में सहयोग देने वाले नीमच, नसिराबाद के प्रदेश में आ पहुँचा। भिलवाडे में वह आराम के लिसे रुका । यह समाचार मिलते ही ७ अगस्त १८५८ को सरवर गाँव