पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५५०

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अस्थायी शान्ति ] [चौथा खंड पेशवाने वहाँ के राजा को २५ लाख का दण्ड किया; किन्तु अस के बहुत गिडगिडाने पर १५ लाख पर समझौता किया । तात्या वहाँ पाँच दिन रहा हर घुडसवार को ३० और पैदल सैनिक दो २० के मासिक वेतन के हिसाब से सब का वेतन चुका दिया । अब फिर दक्षिण जाने के कार्यक्रम की चर्चा तात्या, रावसाहब और बॉदा क नवाब करने लगे। पेशवा की जिस सेना का प्रमुख अद्देश नर्मदा पार कर दक्षिण में प्रवेश करना, था। अंग्रेजों ने तात्या की योजना को असफल बनाने के लिअ अपनी सेना का मजबूत और कुशलतापूर्ण व्यूह रचा तथा असके बाहर जाने के सभी मार्गों को रोक रखा। किन्तु तात्या के हाथ तोपें जो लगी थीं ! हर विपत्ति का सामना करने को वह सिद्ध था । असने अपने मित्रों को मंत्र दिया ' अब सीधे अिदौर ! यह अनोखी सूझ तात्या के साहसी स्वभाव के योग्य ही थी। अपनी अक भी सेना पास न होते हु तात्या ने नयी सेनाओं, नये राज्यों अव नये राजमुकुटों का निर्माण किया था। अिस तरह के अद्भुत बल के नेता को जिंदौर पर बड जाना तनिक भी असम्भव न था । होलकर का कर्तव्य था, कि अपने स्वामी पेशवा की सहायता करे । सीधे बन कर यदि न दे, तो बलात् अससे लेनी पडेगी । अिंदौर की सेना गुप्तरूप से तात्या के वश में थी; यहाँ तक कि भिंदौर के दरबारी तात्या को निमंत्रण दे रहे थे! सो, तात्या ने यह दाँव रचा और झालरापट्टण से वह त्वरा से दक्षिण की ओर बढ कर मालने में घुसा और सीथे रायगढ के पास आ खडा रहा! तब नात्या का पीछा करने के लिमे सन दिशाओं से रॉबर्टस्, होम्स, पार्क, मिचेल, होप, अव लॉकहार्ट-ये सेनापति दौड पडे ! तात्या भिंदौर पर इमला कर रहा है, यह सुन कर अिनका कलेजा कॉपने लगा । मभू से अंक चल पडा; दूसरा नालखेड की ओर दौडा, तिसरा अिस पशोपेश में रहा कि वह रायगढ जाय या नहीं ! कडे कष्ट के बाद मिचेल ज्यों ही अक पहाडी पर चढा, असने दूसरी ओर तात्या को वहीं से अतरते देखा; किन्तु तब अंग्रेजी सेना जितनी थकी हुी थी, कि मेक डम आमे धरना दूभर हो गया था ।