पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५५१

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अध्याय २ रा] ५०७ [ पूर्णाहुति सो, वह वहीं रुकी। तात्या ने अिस से पूग लाभ अठाया और आगे कूच कर दिया। दूसरे दिन तनतोड चेष्टा कर मिन्चल ने तात्या को गॉठा। अब क्रांतिकारी थके हुमे थे, फिर लडामी को सिद्ध हुसे। अन की संख्या पाँच इजार थी और साथ ३२ तो! किन्तु तमाशा यह रहा कि मेक हजार अग्रेजी सेना अनपर हट पढते ही लहू का लेनदेन होने तक तो छोडकर क्रांतिकारी हटने लगे । यहाँ पर तात्या टोपे और कुँवरसिंह के वकयुद्ध के ढग का भेद प्रकट होता है। अंग्रेजी सेना से खुले मैदान में सामना कभी न करने का नियम तोहा न जाय, अिस लिओ मार्म में हाथ आये कमी अच्छे सुअवसर तात्या की सेना ने गंवाये थे । ___ रायगढ का मैदान छोड तात्या की सेना बेतवा नदी के पास जंगल में घुस गयी और दूसरी ओर सिरंग गाँव के पास निकल आयी। वहॉ तात्या को चार तोपें मिली; अिसी भर्से में बारिश बहुत जोरों से शुरू हुी, जिस से अंग्रेजी सेना की हलचल बद हो गयी। तात्या की सेना को भी सुस्ताने का समय मिला । अक सप्ताइ आराम करने के बाद वह अत्तर की ओर मुडा शिंदे के रान के भिसामढ माँव ने असे रसद देने से अिनकार किया । तब तात्या को बलात् सब कुछ लेना पड़ा। अिधर आठ तोपें भी असे मिल मयीं । यहॉतक ठीक हुआ। किन्तु नर्मदा तो अब दूर रह गयी । जितनी अग्रेजी सेना जब अकेले तात्या के पीछे पड़ी हो, तो नर्मदा की बात ही कौन कहे ? अक अंग्रेज लेखक लिखता है:-फिर पीछेइटों का वह अनोख्त तांता बॅध गया, जो दस महीनों तक, पराजय की खिल्ली अडाता चलता रहा, जिस से तात्या का नाम बहुतेरे अँग्लो अिंडियन सेनापतियों की अपेक्षा सुरोप के लोगों को अधिक परिचित हुआ । असके सामने जो समस्या थी वह साधारण सी न थी ! हारे हमे अशियाअियों की सेना को अक सूत्र में बाँधना था, जिस का तात्यासे व्यतिगत कोजी संबध न था, और आपस में भी अस सेना के सैनिकों का अंक ही बंधन था-समान वेष और समान डर, बिटियों के नाम से दोष और अन की फाँसी का भय । असे कबाड को सेना का रूप देकर सदा ही असे चलती रखना पडता था आर वह भी अस