पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५५२

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अस्थायी शान्ति] ५०८ [चौथा खंड वेग से, जिससे केवल पीछा करनेवाले शत्रु ही हक्काबक्का नहीं रह जाते थे, बल्कि तात्या के कूच की रेखा से समकोण करते हुओ दौडनेवाले भी हैरान हो जाते थे। अपने अर्धसंगठित कवाड को पागल के समान दौडते रखने में तात्या कोकी दर्जन शहरों को जीतना पडा, नयी रसद जुटानी पड़ी. नयी तोपें हथियाने की बारी आयी, और तो और, जनता से स्वयसेविकोंको भरती करना पड़ता था, जिन को केवल प्रतिदिन ६० मीलों के वेगसे भागते रहना । ही नसीब था। अितनी सभी बातों को यथाप्राप्त साधनों से सफल बनाने में तात्या की असाधारण क्षमता का परिचय मिलता है। इमारे विद्रोही शत्रु के नाते हम भले ही अस की हेठी करें, किन्तु था हैदरअली की बराबरी का। और यदि अस की योजना पर पूरा अमल वह कर सकता और नागपुर से घुसकर मद्रास की ओर निकल जाता, तो हैदरअली के समान वइ भयानक शत्रु बन जाता । नेपोलियन को अिग्लिश चनल ने रोका; ठीक असी तरह नर्मदाने तात्या को रोका। अक नर्मदा पार करना छोड, वह सब कुछ कर पाया था। अंग्रेजों की सेनाओं पहले तो अन की अंग्रेजी आदत के अनुसार कूच करती रही और आखिर वेग से बढना जब वे सीख गयी, तो ब्रिगेडियर पार्क तथा कर्नल नेपियर तात्या की आधी रफ्तार तक पहुंच पाये थे। फिर भी वह छटक नया; और गरमी, बरसात, जाडा फिर गरमी से झूझते हुने भी वह भागा ही जा रहा था-कभी दो हजार 'दिल टूटे अनुयायियों के साथ तो कभी १५००० की सेना लेकर । * अब क्रांतिकारियोंने अपनी सेना को दो भागों में बॉटा । मेक का नेतृत्व रावसाहब पेशवाने तथा दूसरे का तात्याने किया। दोनों सेनाओं भिन्न भिन्न दिशाओं में भले ही जाती थी, किन्तु अन की युद्ध-पद्धति अक ही थी, शत्रु को चकमा दे, नयी तो पा तथा गवाँ, कभी शत्रुसे सफल सामना कर के दोनों सेना ललितपुर के पास मिलीं। किन्तु नर्मदा अब भी दूर थी।

  • 'फ्रेन्ड ऑफ सिंडिया' से.