पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५५३

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अध्याय २ रा] [पूर्णाहुति और, तात्या और रावसाहब अब शत्रु के चंगुल में पक्के फंस गये थे । दक्षिण से मिचेल, पूरब से कर्नल लिडेल्, अत्तर से कर्नल मीड, पश्चिम से कर्नल पार्क तथा चम्बल की ओर से रॉबर्टस्-अिस तरह शत्रु के पाश तात्या को जकड रहे थे और वह पूरी तरह घिर गया था। तब तात्या और रावसाहबने मंत्रणा की, जिस के अनुसार ये झट कजूरी को आ निकले, किन्तु वहाँ भी अक अंग्रेजी सेना खडी थी । स्रो, वे फिर से जंगलों में घुस गये और अत्तर को तलभाट तक पहुंच गये। अंग्रेजोंने समझा, अब दक्षिण जानेका विचार तात्याने छोड दिया होगा । किन्तु वहीं से तात्या और रावसाहन धडक मार कर, बेतवा लॉच तथा कजूरी और रायगढ में अंग्रेजों से मेक भिडन्त कर कभी खले तौरपर, तो कभी छिप कर दक्षिण को रुख कर कूच करते जाते थे। तात्या के अिस साहसी हलचल से अंग्रेज दुविधा में पडे । असे रोकने को वे चारों ओर से दौड पडे । किन्तु अजीब हलचल से शत्रु को चक्रमा दे कर अिस सूरमाने बिजली के वेग से घाटियों तथा नदियों को पार कर, जंगलों में होते हुभे, ठेठ दक्षिण की ओर प्रगति की । पार्क मेक पासेपर, मिचेल पीछे से, और बेचेर सामने से चढ आया, तो भी तात्याने अपनी अनोखी मार्गक्रमणा को न रोकते हुओ दक्षिण की ओर प्रगति जारी रखी, निदान वह नर्मदापार आ धमका । अचरज से इक्केबके संसारने तात्या की जय पुकार कर आनद से तालियों पीटी ! तात्या नर्मदा पार कर और दक्षिण के मार्ग पर बल पडा । मॅलेसन लिखता है:-~-तात्याने मिस्र जीवट तथा हठ से पीछेइट की यह अनोखी योजना सफल कर दिखायी, अस की प्रशसा न करना असम्भव है जिस बारे में १७ जनवरी १८५९ के (लंदन ) टाअिम्स का विवरण पढते ही बनता है (देखो सदर्भ ५३)! निदान , मराठों का राजा अपनी सेना के साथ दक्षिण आ पहुँचा ! होशंगाबाद के पास नर्मदा पार कर तात्या नागपुर के नजदीक पहुंच जाने का संपाद पाते ही, न केवल तीन प्रांतों में, न केवल अिंग्लैंड में, सारे युरोप