पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५५४

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अस्थायी शान्ति ] [चौथा खंड भर में कहा गया , 'धन्य ! तात्या टोपे धन्य, सबने तात्या की प्रशंसा की! अकाओक क्रांति का रुझान ही बदल गया । * अस के सामने वह निजाम का राज था, जहाँ तात्या के सहानुभूतिक दरबार में थे, जहाँ परली और पुणे, बम्बी , तथा समूचा महाराष्ट्र फैला पडा था । वह जरिपटका-मराठों का स्वाधीन झण्डा-फिरसे महाराष्ट्र में आ पहुंचा था ! महाराष्ट्र के मिसी रायगढसे, अिसी पावन खिंडसे, अिसी बडगॉवसे कौनसी अत्यद्भूत गुप्त सामर्थ्य फिर जागृत हो झुठेगी अिसका क्या पता था ? भागानगर का निजाम, मद्रास का लॉर्ड हारिस, बम्बी का लॉर्ड अलफिन्स्टन तथा कलकत्तेवाला लॉर्ड कॅनिंग सब ने दाँतों तले अँगली दबायी ! तात्या ने दक्षिण में पहुँच कर अक अद्भुत चमत्कार कर दिखाया था। किन्तु वह अक चमत्कार ही था। क्यों कि, अस से पूरा लाभ झुठाने का समय कवका बीत चुका था। लगभग सभी स्थानों में क्रांति की पूरी हार हुी थी। और अिस विराट क्रांति में जो भीषण रक्तपात हुआ अस की स्मृति अबतक जनता के मन मे हरी होने से सारा राष्ट्र दुबला और बावला सा बन गया था । तिस पर भी यदि नागपुर, कम से कम, कुछ जीवट से काम लेता तो भी क्रांति की शकल बदल जाती। अत्तर में हर देहात से और हर किसान-- नागरिक से अपनी ओर से तात्या को युद्ध की सामग्री पहुंचायी गयी थी और अक महान् देशभक्त के नाते जनता तात्या को आदर से पूजती थी। किन्तु महाराष्ट्र में-तात्या के महाराष्ट्र में-मिस अदात्त कार्य में हाथ बॅटाने का धैर्य किसीने न दिखाया । हॉ, अस कुमसिद्ध रानी बका की ' वफादारी' के वीज से और क्या फल पैदा हो सकती है? अपने असाधारण यन्नों का जैसा शून्य स्वागत देख कर भी, तनिक भी धीरज न छोडते हुओ, तात्या टोपे वहीं रहा और आगामी योजनाओं को सोचने लगा। तुरन्त चारों ओर से अंग्रेजी सेना जमा होने लगी, तात्याका पीछा करने वाली सब शत्रु सेनाओं अब नर्मदा पार कर दक्षिण में आ चुकी थीं। तो भी ___ * सं. ५४१ मलेसन कृत अिडियन म्यूटिनी खण्ड ५, पृ. २३९।२४०.