पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५५५

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अध्याय २ रा] ५११ [पूर्णाहुति यह सूरमा अडिग खडा था । यहाँ तक, कि शत्रु को झांसा दे कर आगे बढ जाने का और भी अत्यद्भुत बनाव असने प्रत्यक्ष कर दिखाया। पीछा करने बाली तथा घेरनेवाली सेनाओं की रोक-थाम कर अनकी डाक लूट, तारायंत्र को तोड तथा चौकिया लूट कर तात्या ठेठ नर्मदा के मूलस्थान तक पहुंच गया । क्यों ? क्यों कि, अब बडोदे ने अस का मन आकर्षित किया था। नर्मदा के सब घाटों को शत्रु ने दोनों ओर से रोक रखा था, तो भी तात्या नर्मदा लॉचने के लिये करजन गाँव के पास आया । वहॉ पर मेजर संदरलंड से अक धमासान भिडन्त की, जिस में अप्स की तो छिनी गयीं, तब वह नर्मदा में कूद पड़ा और तैर कर निकल गया । जिस समय तात्याने तथा असकी सेनाने अजीब यौद्धिक चालों का परिचय दिया । मॅलेसन लिखता है:" अनकी तोपें अब छिनी गयी थी, तब मानो, तात्या के सैनिकों ने यसाधारण वेग से मार्ग तय करने का प्रत्यक्ष पाठ ही हमें सिखाया । जिसे देख मैं तो भानता हूँ, मंजिल दर मॅजिल दौडते रह कर सफल पलायन करने में संसार की कोी भी सेना अिस भारतीय सेना का मुकाबला न कर सकेगी। अिस भगदड में भी तात्या ने बडोदे की दिशा में अपनी मॅजिल जारी ही रखी थी। बडोदे में, बडोदे के दरबार में तथा सेना में नानासाहब की नीति को पसंद करनेवाला दल बहुत प्रबल होने से गायकवाड की सेनाओं मचल रही थी. कि कब तात्या आयगा और वे खुल्लम खुला अस के अधीन हो जायगी। तात्या अब रायपुर से छोटा अदयपुर रियासत में पहुंच चुका था। बडोदा अब केवल ५० मीलों पर ही रहा था। ____ अग्रेजी सेना पीछा कर ही रही थी। छोटा अदेपुर में 'पार्क' तात्या पर चढ आया, जिस से वढोदा का विचार तात्या को छोडना पड़ा! पश्चिम का रुख छोड वह सीधे अत्तर की ओर चल पडा और अस ने बॉसवाड़े के जगल का आसरा लिया। किन्तु ठीक अिसी समय अिग्लैड की रानी की घोषणा का विश्वास कर, बॉदा के नवाब ने हथियार डाल दिये । तात्या और रावसाहब अब जैसे चंगुल में फंसे थे, जिस से छुटकारा पाना दूभर था। दक्षिण में नर्मदा, पश्चिम में राबर्टस् और अत्तर तथा पूरब में अँची खडी