पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५५८

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५१४. अस्थायी शान्ति ] [चौथा खंड यह जादूगर तात्या, फिर, रावसाहब, फीरोजशहा तथा अन्य सहयोगियों के साथ २१ जनवरी को अलवर के पास सिखार में प्रकट हुआ । अंग्रेज फिर पागलों की तरह अस का पीछा करने लगे। छोम्स की सेना के साथ क्रांतिकारियों की अक भिडन्त हुी, जिस में अन्हे हार खानी पड़ी। . सिखार की हार से क्रांतिकारियों की, विजय के बारे में, निराशा न हुप्री-क्यों कि, वह आशा बहुत पहले नष्ट हो चुकी थी। हॉ, अब प्रतिकार करना पूर्णतया असम्भव हो चुका । नर्मदा पार कर बडौदे पर चढामी करने की तात्या की योजना टूट गयी थी, तब वृकयुद्ध के ढंग में कुछ सुधार करने के प्रस्ताव पर तात्या और रावसाहब सोच रहे थे और कुछ निश्चय कर तात्या टोपे तथा रावसाइब ने अपनी सेना से बिदा ली। असने अपने साथ केवल दो घोडे, मेक टटुआ, दो बाम्हण रसोअिये और मेक टहलुवा रखा । अपने अिस परिवार के साथ वह गवालियर के सरदार मानसिंग के पास गया, जो पारौन के जंगलमें छिपा हुआ था। मानसिंहने कहा, 'तात्या, तुम सेना को छोड आये-अच्छा नहीं किया, 1 तात्या का अत्तर था, 'चाहे वह अच्छा है या बुरा, मैं तो अब तुम्हारे साथ ही रहने आया हूँ । दम-तोड दौरों से अन मैं तो अब गया हूं ।* तान्या मानसिंह के पास रह रहा है यह समाचार अग्रेनो के पास पहुंचा। रणमैदान में आमने सामने लडकर असे पकड़ने में अंग्रेज असमर्थ रहे। तब अन्हों ने अपने स्वाभाविक हथकण्डे से काम लेना, छल कपट और विश्वासवात के नीच साधन, जो चलाना आसन होता है, अमल में लाना तय किया। पहले मानसिंह के पास दूत भेजा गया और कहा गया, कि यदि मानसिंह स्वयं आत्मसमर्पण कर तात्या को पकडवा दे तो असे क्षमा बख्शी जायगी और नरवाड की रियासत असे दे देने का अनुरोध शिंदे से किया जायगा । यह मानसिंह, जिसने पहले अपने चाचा को अंग्रेजों को सौप देने तक नीचता की थी, लालचमें फंसा और अंग्रेजों के वश में हो गया। असने तात्या को बताया,

  • तात्या टोपे की डायरी से