पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५५९

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अध्याय २ रा ] ५१५ [पूर्णाहुति कि वह अंग्रेजों को आत्मसमर्पण कर रहा है । तात्याने आत्मसमर्पण से अिन- कार कर दिया । अिसी समय फीराजशाह ने अपनी छावनी में आने के लिये तात्या को पत्र लिखा था । वह पत्र तात्या ने मानसिंह को बताया और पूछा “मैं चला जाझं या रहू ! जैसा तुम कहो मैं करूंगा।' नीच मानसिंह ने कहा ' अभी कुछ दिन ठहरो, फिर तय करेंगे । तात्या जान गया था, कि मानसिंह ने अग्रेजों को आत्मसमर्पण कर दिया है, तो भी तात्याने असे अपने बारे में श्रीमानदार समझा था । मानसिंह ने कहा “ मेरे लौटनेतक तुम वहाँ पर रहो, जहाँ मेरा आदमी तुम्हे ले जायगा ।" अम्र की बतायी जगह में, सुरक्षित जान कर, तीन दिन तक तात्या रहा। तीसरे दिन आधी रात में वह शूर मराठा शेर, जिसने अबतक हजारों लडालियों में शत्र को हैरान किया था, हजारों मील रौंद कर तथा प्राणघातक संकटों से बड़े कष्ट तथा चातुर्य से अपने को बचाकर शत्रु को आजतक घुमाया था, अन्तमें विश्वासघाती देशबंधु से पकडवाया गया। मानसिँह तात्या को छोड सीधे अंग्रेजों के पास पहुंचा। अन्हों ने अम्बनीवाली पलटन के दस्ते के साथ मानसिह को तात्या को पकडने के लिओ, भेज . दिया। तात्या के लिओ हर भारतीय के हृदय में जितना आदर और प्रेम था, कि अंग्रेज किसी भी भारतीय का विश्वास नहीं करते थे। सो, बम्बनीवाले सनिकों को केवल अितना ही बताया गया था, कि 'मानसिंह की आज्ञा मान कर अस के बताये अभियुक्त को पकड लाना' । मानसिह अिन सिपाहियों के साथ 'पारौन के जगल में पहुँचा । तात्या को अस ने तीन दिनों का समय दिया था, वह ठीक बेला पर पहुँच गया। मानसिंह के आदमी के बताये स्थान में । तात्या सो रहा था। नीच मानसिंह ने साथ आये हुओ बम्ब श्रीवाले सिकरों को छोड दिया और वे अस शेर पर झपटे । तात्या ने ऑखें खोली तब अग्रेजों . का बंदी था। ७ अप्रैल १८५९ की आधी रात में तात्या टोपे विश्वासपातसे पकडा गया, दूसरे दिन सबेरे असे सिपरी में जनरल मीड की छावनी में ले जाया