पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५६०

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अस्थायी शान्ति ] [चौथा खंड www mom गया। तुरन्त सैनिक न्यायसमिति की बैठक हुी; ब्रिटिश राजशासन के विरुद्ध बलवा करने के अपराध में अस की जाँच हुश्री । बुधवार को तात्या ने अपना वक्तव्य लिखा :-- "मैंने जो कुछ किया अपने स्वामी की आज्ञा से किया। कालपी तक मैं नानासाहब के मातहत रहा। फिर मैंने रावसाहब की आज्ञा मानी । युद्धनीति को छोड तथा प्रत्यक्ष लडाी के बिना मैने या नाना ने किसी भी गोरे पुरुष, स्त्री या बच्चे को निर्दयतासे नहीं मारा, न फाँसी दिया । बस; मुझे न्यायसमिति के काम में कुछ भाग नहीं लेना है।" अंग्रेजों के प्रार्थना करने पर तात्या ने क्रांति के प्रारंभसे तब तक की दैनंदिन घटनाओंका महत्त्वपूर्ण तथा विश्वस्त विवरण थोडे में बताया। मुनशी ने यह सब लिख लिया और तात्या को पढ सुनाया और फिर अस वक्तव्य तथा दैनंदिन कार्यक्रम के नीचे तात्या ने बढ़िया रोमन अक्षरों में "Tatia Toper लिख दिया; किन्तु अस से पूछे गये प्रश्नों के अत्तर, अपने वक्तव्य तथा विवरण के अनुसार हिंदी में दिये; जो साफ, थोडे में और तेजस्वी थे । अससे अंग्रेजो में से कोभी प्रश्न पूछे तो वह शान्ति से हिंदी में अत्तर देता 'मालूम नहीं।' मामूली अंग्रेज अफसर जब असके पास से झैठकर निकलता तो असके चेहरेपर तुच्छता और घृणा के भाव दिखायी पडते। तीन दिन यह जाँच हो रही थी। भारतीयों के झुण्ड के झुण्ड असके दर्शन को जमा होते, किन्तु अन्हें लौटा दिया जाता । जिन को तात्या के दर्शन की अनुज्ञा मिलती वे असे देखते ही आदर और प्रेम से झुक कर प्रणाम करते। तात्या को अंग्रेजों ने पहले जब बताया, कि न्यायसमिति असका न्याय करेगी और वह अपने बचाव के लिये आवश्यक सबूत भी जमा कर रखे ।तब असने कहा, “ मै, जब कि अंग्रेजो के विरुद्ध लडा हूं, मुझे पूरीतरह मालूम है कि मुझे मरने के लिअ सिद्ध रहना चाहिये । न मुझे तुम्हारी न्यायसमिति, न तुम्हारी जाँच की आवश्यकता है "। और भारी हथकड़ियों से कसे हुआ हाथों को झूचा कर कहा, 'अिन भारी शृखलाओं से, अक मात्र अपाय है, तोपसे अडा दिया जाना या फाँसीपर लटकना । हॉ, मै तुम्हें अक बात कहना चाहता हूं। ग्वालियर में