पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५६२

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'अस्थायी शान्ति ] ५१८ [चौथा खंड wrrammam तात्या का निष्पाण शरीर छिन्नभिन्न दशा में लटकता देख कर अपनी बहादरी पर गर्व करते हुओ, संतोपित अंग्रेज वीर लौट पडे । तात्या की देह असी दशा में सूर्यास्तपर्यंत लटक रही थी। अस के पहरेदार जब चले गये, तब भीड को चीरते हुये गोरे दर्शक आगे बढे और स्मति के रूप में तात्या के बालों के गुच्छों को प्राप्त करने में चढाअपरी करने लगे। १८५७ के स्वातंत्र्य समर की धधकती भव्य-भीषण यज्ञवेदी में यह अन्तिम पूर्णाहुति पडी! जिस तरह वह भीषण ज्वालामुखी, जिस ने अपना जबडा पूरा खोल कर क्रोधावेग से माँस, रक्त, लाशों, बिजली, गडगडाहटौं, जलते हुमे लाल लाल उष्ण लावा रस को अगला था, अब अपना मुंह बंद करने लगा था। असका अण्ण लावा रस अब लोप रहा था, अस की तलवारों की जीभ फिरसे म्यानों में समेट रही थीं; कडकती बिजलियाँ, कान फाडनेवाली गडगडाहटें, अस के वात्याचक्र, अस के तूफान वेग, अस की भीषणता-सब मदारी के पिटारे में गुप्त हुआ और वायुरूप बन कर वायुमण्डल में मिल गये। और ज्वालामुखी का मुंह बंद हो गया; अस की सतह पर फिरसे हरियाली अगने लगी, खेती फिर से शुरू हुमी; हलामी पड गयी; शान्ति, सुरक्षा और सुकोमलता का बोलबाला हुआ। और अिस ज्वालामुखी का पृष्ठभाग जितना मुलायम और आनंदपद है, कि किसी को विश्वास नहीं होता, कि जिस के नीचे बेक भीषण ज्वालामुखी सुस्ता रहा है ! -AAN - D A - - - -