पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५६७

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अध्याय ३ रा] ५२३ [समारोप . सम्राट बहादुरशाह ची श्रेणी का कवि था। क्रान्ति के कोलाइल में किसीने मेक शेर कहा था दम-दमे में दम नहीं, अब खैर मॉगो जान की। औ सफर ! ठंढी हुी शमशीर हिंदुस्थानकी ॥ [सम्राट, आप हर दम में दुबले होते जा रहे है । अब आप के माणों की रक्षा के लिसे प्रार्थना करो ( अंग्रेजों से ), क्यों कि सम्राट अब हिंदुस्थान की तलवार के सदा के लिओ टुकडे हो चुके हैं ] . कहा जाता है, कि सम्राट ने यो जवाब दिया:-- गाजियों में वू रहेगी जब तलक श्रीमानकी। तब तो लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्थानकी । [समाप्त filimuslitics %ERAPRIYANK AAAAA HIMITEOS LEAS

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