पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५८

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...ANI 87/A है FASTHANI T HIS finition अध्याय ३ रा नानासाहब और लक्ष्मीबाई बजाओ ! इतिहास के अग्रदूतो! अपनी तुरहिया और शंख जोरसे फॅको ! क्यो कि, दो महान वीरश्रेष्ठोका प्रदेश अब इतिहास के रंगमंचपर हो रहा है। हिंदमाता के गलेके हारके मानो, ये दो आबदार मोती! इस समय स्वदेश के क्षितिजको अमा के घटाटोप अंधेरेने जब पूरी तरह व्यात कर दिया था तब दो दमकते हुए तेजोगोलोंके समान ये दो व्यक्ति स्वदेशके आकाशमें चमक रहे है। अपनी देहके खूनकी आखरी बॅट तक स्वदेशपर हुए अन्याय्य अत्याचारो का प्रतिशोध लेने को सिद्ध हुए, मानो, ये दो भयकर अकाली' ही है। स्वदेश, स्वधर्म और स्वराज्यके लिए अपने प्राणोको निछ्यवर करनेवाले येही दो हुतात्मा वीर । शिवाजीको जन्म देनेवाली भारमाताका खून अब तक सूखा नही है-ससार को आव्हान देकर सिद्धकर दिखानेवाले तलवारके धनी ये दो महावीर, मानो, प्रतिनिधिरूप खडे हैं ! स्वराज्यकी परम पवित्र महत्त्वाकाक्षा को अंतःकरणमें पालनेवाली येही दो विभूतियाँ । हारमै भी धवलित कीर्ति से अलकृत धर्मयुद्धके येही दो धर्मवीर ! इसीसे पाठक, उठो, परम आदरसे खडे हो कर इन वीरोका स्वागत करो! क्योकि, नानासाहब पेशवा 'तथा झॉसीवाली महारानी ये दो विभूतियाँ अब इतिहासके रंगमंचपर पदार्पण कर रही हैं। पावनप्रताप महाराष्ट्र के माथेरानकी पहाडियोंके पठारके प्राकृतिक