पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५९

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अध्याय २ रा] २७ [नानासाहब और लक्ष्मीबाई manam सौदर्यका वर्णन करें या उसकी तलहटीमे फैले हुए हरे मुलायम मखमली कछारोंका वर्णन करें; हम निर्णय नहीं कर पाते। इस सुदर पहाडियोंकी उपत्यकामे तथा गगनचुंबी माथेरानकी गिरिशिखरोंकी छायामे वेणू नामक एक छोटासा गॉव, उस प्रकृति-सुदर भूप्रदेशकी शोभाको और सुदर बनाते हुए, वहॉ सुखसे बसा हुआ था। उस वेणू गॉवके प्राचीन और प्रतिष्ठित धरानोंमें माधवराव नारायण भट का घराना अग्रसर माना जाता था। इस देहाती सीधे-सादे वातावरणमे रहकर भी माधवराव तथा उनकी शीलवती धर्मपत्नी गगाबाई सुखचैनसे जीवन बीता रहे थे। इस सुखी परिवारमे १८२४ ई. मे गंगाबाईकी गोद बेटेसे भर जानेके कारण सबके मुँहपर आनंद लहरें मार रहा था। यह पुत्र और कोई न होकर नानासाहब पेशवा था, जिसका नाम सुनतेही फिरगियोंके छक्के छट जाते हैं। स्वाधीनता और स्वदेश के लिए झूझकर अपना नाम इतिहासमे अमिट अंकित करनेवाला वही नानासाहब! __ इसी अरसेमे, बाजीराव द्वितीय अपने राजसिहासनसे बचित होकर गगाके किनारे ब्रह्मावर्तम अपनी शेष आयु- बिता रहा था। कई महाराष्ट्रीय परिवार उसके साथ थे। और बाजीराव अपने पाससे खर्च कर उदारताके साथ उनको पालता है यह मालूम होनेपर और भी कई परिवार उसके पास आकर बसे । १८२७ ई. मे बाजीरावकी शरणमे ब्रहावर्तको पहुँचे परिवाराम माधवरावका परिवार भी था। वहाँ रहते हुए माधवरावके इस बालकसे बाजीराव बहुत आकर्षित हुआ और फिर तो नानासाहब सारे राजदरबार ही का लाडला बना । बचपनहीमे दीख पडनेवाली वह तेजस्विता, वह गहरी छबी, वह असाधारण बुद्धि-बाजीरावके मनपर इनकी गहरी छाप पडी, जिसके फलस्वरूप बाजीरावने उसे गोद लेनेका निश्चय किया। ७ जून १८२७ को बाजीराव द्वितीयने विधिपूर्वक उडे समारोहके साथ नानासाहबको गोद ले लिया। नानाकी उम्र उस समय २॥ वर्षकी थी। इस प्रकार वेणू गॉवमे पैदा हुआ यह साधारण बालक, भाग्यबलसे, पेशवाके सिहासनका उत्तराधिकारी-दत्तकही क्यो न हो'बन बैठा। मराठी साम्राज्यके पेशवाके पदपर उत्तराधिकार प्राप्त होना निःसंदेह