पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/७०

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ज्वालामुखी] ३६ [प्रथम खंड


होनेपर भी वे ४० साल के पुख्ता पुरष मालूम होते थे। ऐसे तो उनका वदन मोटा ही था ;चेहरा गोल:आँखे शेर के समान सब ओर फिरनेवालीं तेजस्वी और भेदक थी | उनका रंग स्पँनियाँर्ड के समान गेहुआ था;उनकी बातो में हँसोडपन झलकता था। दरबार मे वे किनखावी वेश पहनकर जाते। परम उढार ऑर दयापूर्ण ह्र्दय से उन्होने प्रजा का प्रेम प्राप्त किया था। अपनी जनता के लिए वात्सल्यभाव रहना तो स्वाभाविक ही है किन्तु जिन अंग्रेजों ने उनके विरूद्ध पडयत्र कर उनका सर्वनाश किया उन अंग्रेजों से भी सदा शिष्ट तथा उदार बरताव रखते थे,यह विशेष बात है,किसी अंग्रेजों नौजवान ढपति का मन हुआ कि चार दिन सैर करें तो'महाराजा'नानासाह्ब के यहाँ उनकी अगवानी होती थी। कानपुरमें रहते ऊब उठे कई गोरे और उनकी मेमें'महराजा'नानासाह्ब की राजधानी में आते थे और बिठ्र्र से बिछ्डते समय उनसे कीमती शालो,मौल्यवान मौतियो तथा मणियो को भेटस्वरप ले जाते यें। इससे स्पष्ट है कि,व्यक्तिगत विदेष का विष नानासाहब के मन को छु तक न गया या। जिस शत्रुको रणक्षेत्रपर अत्यंत कठोरतासे हना जाता है, उसी शत्रुपर उपकर कर उदारता से,सामाजिक शिषाचार के नियमों का पालन करने का महान ऊँचा तथा वीरता को शोभा देनेवाला आदशे भारतीय इतिहास तथा महाकाव्यो मो बार बार गौरवपूणे रुपसे वर्णत है। राजपूत वीर अपने हाडवैरी से भी कल्पनातीत उदारतासेपेश आते थे। इससे ध्यान में रखना चाहिये की उस समय नानासाहब और अंग्रेज अच्छे दोस्त थे| जबतक 'महाराजा' नानासाहब के राजमहल में दावतों पर हाथ साफ करने का अवसर मिल जाता था तबतक अंग्रेज हाकिम और उन की मेमें नानासाहब की प्रशसा के पुल बाधते ये; नानासाहब हमारे देशबाघवो से सबध आनेपर जिस सचाई से हमेशा पेश आते थे वह अकथनीय है। हाकिम पेश आते ये वह अकयनीय है। हाकिम उनकी मित्रता और सरलता में पूरा विश्वास करते थे;पताकाघारी उन्हे महानू पुरुष कहते ये।टेव्हेल्यान कूत'कानपुर'