पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/७५

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अध्याय ४ था] , ४३ [अवध , पीढियों ने धीरे धीरे, भिन्न भिन्न रियासतोंकी नीव कुतर कर पोली कर रखी थी, जिसका डलहौसी को पाठ पढाया गया था; और इसीसे कलम के गोशे से ही उसने उनमें से कई राज्य अंग्रेजी सत्ता में शामिल कर लिये। ____स. १७६४ में पहले पहल अवधके नवाब का ईस्ट इडिया कंपनीसे । पाला पड़ा; तबसे कपनी सरकारके हितू सेवक अवधका यह उपजाऊ प्रात 'हडप जानेका जतन बराबर करते रहे। अवधका नवाब अपने ही पैसोसे अपनी 'रक्षा' के लिये अंग्रेजी सेनाको रख ले-इस तरह उसे दबाकर अंग्रेजोंने उनकी सेनाके वेतनखचके मदमें सालाना सोलह लाख रुपये नवाबसे अठे। इस प्रकारके 'सरक्षण तथा ऐच्छिक सख्तीसे' नवाबका भडार खाली हो गया। फिरभी अंग्रेजोंने उसे सूचित किया (वास्तवम वह छुपी आजा ही थी) कि यदि वह अपना राज तथा वैभव बनाय रखना चाहता हो, तो वह अपने हिंदी सेनाविभाग को तोड दे और उसके स्थानपर अंग्रेजी सेनाको रख ले। अंग्रेज अच्छी तरह जानते थे कि जो खजाना इस 'सरक्षक' सेनाके वेतन ही को पूरा नहीं कर पाता, उसे और लादे हुए सेनाविभागोके वेतनको पूरा कर देना सर्वथा असम्भव है और सचमुच इसे जाननेही से उन्होंने अपनी मॉग नवावके सिर मदी। और निदान, ( उसकी इच्छाके विरुद्ध) कपनीने उसे बताया कि, भले ही राजकोष खाली हो, रियासतका प्रदेश तो है न ? फिर क्या था ? नवाब का मगल करनेही के हेतुसे प्रेरित होकर, कपनीने वार्पिक टो करोडकी आय का वह प्रात सदाके लिए हडप लिया और गोरे सैनिकोंकी पलटने नवाब की नौकरीमें जबरदस्ती रख दीं। वह प्रात था रुहेलखड और दोआव! __ अवध के इस प्रदेशपर डाका मार अंग्रेजोने नवाब के साथ एक सधि की जिससे तय हुआ कि क्यों कि नवाबने सभी प्रदेश से स्वामित्व के सत्र अधिकार छोड दिये हैं, बचा हुआ सब प्रदेश उस के वश में पीढी दर पीढी नवाब के अधिकार मे चलता रहेगा। इस संधिपत्र में एक शर्त यह थी कि नवाब कभी अपनी प्रजापर अत्याचार न करे। स. १८०१ मे यह संधि हुई और उस के बाद जब चाहा तब करोडों रुपये कपनीने उस से ऐंठे। अवध के सभी राजाओं का भविष्य अब कपनी के सेनाधिकारियों के हाथ था।