पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/७७

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अध्याय ४ था] ४५ [अवध लार्ड हेस्टिग्सने स्वय यह निर्दोष प्रमाण दे रखा है। तिसपर भी कपनी ने नवाब को यह डॉट दी थी कि यदि वह अपनी प्रजा को सी रखने का प्रबध न करे तो कपनी यह मानेगी कि स. १८०१ की सधि रद हो चुकी है। __ और संचमुच, स. १८०१ की सधि को ठुकराया गया और वेचारे नवाब ने स. १८३७ मे फिर से नई सधि की । हाँ, इस सधि ने यद्यपि नवाब की सत्ता को बहुत मात्रा में कमजोर बनाया था, फिर भी स. १८०१ की छलकपट की सधिसे अपना गला छुड़ाने के लिए नवाब ने नई सधि पर हस्ताक्षर किये थे। स. १८४७ में वाजिद अलीगाह नवाब बना। उसने पहिले ही ठान ली थी कि स्वराज्य के प्राणों को कुतरनेवाले इस गोरे विषले कीडे को पूरी तरह नष्ट करेंगे और इसी से राज्य के प्राणो की आधारभूत सेनामे सुधार करना शुरू किया। इस नौजवान राजाने सैनिकोके अनुशासन के बारे में नये नियम बनाये, और कभी कभी वह स्वय सनिक सचलन (परेड) का निरीक्षण किया करता था। सभी सेनाविभागो को प्रतिदिन सवेरे नवाब के सामने सचलन करना पडता था, जहाँ सिपहसालार का गणवेश (युनिफार्म ) धारण कर वह स्वय उपस्थित रहता । उसने कडे अनुशासन की घोषणा की थी कि जो सैनिकदल (रेजिमेंट ) सचलन भूमिपर (परेड ग्राउंडपर) आनेमे देरी कर दे, उसे २००० रुपये दण्ड देना पडेगा और स्वय नवाब भी दिलाई करे तो वह भी दण्ड देगा। नवा अपनी शक्ति बढा रहा है यह देखकर कपनी का माथा ठनका । 'ब्रिटिश रेसिडेंटने थोडेही समयमें सभी सैनिक कार्यक्रमोंको बंद करवाया, और साथ नवानको चेतावनी दी कि नवाब यदि उसकी सेना बढाना चाहता हो.तो कपनी भी 'आश्रित' सेना बढा देगी और उसका बढा हुआ खचं पुरा करनेको प्रतिवर्ष और रकम देनी पडेगी. यह शर्त नबाब को माननी पडेगी! यह सुनतेही उस आत्माभिमानी नवाबके तनबदनमे आग लग गयी; किन्तु समयको पहचानकर उसे सेना-सुधारकी साहसी योजना को

  • मेटकाफकृत 'नेटिव्ह मॅरेटिव्हस् ऑफ दि म्यूटिनी; पृ. ३२-३३.