पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/८०

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वालामुखी] ४८ . [प्रथम खंड mana है। ऊँचे ऊँचे बॉसके जंगलोंसे लहराता हुआ, आम्रवृक्षोंकी घनी छायासे शीतल और हरी हरी उची फसलोसे शस्यशामल यह भूप्रदेश अत्यंत वैभवशाली और मनोहारी है। इमलीके वृक्षोंकी धनी छायासे नारगियोंकी सुगधसे, अंजीरोंके मनोहारी रगोंसे और पुष्परेणुओसे सर्वत्र महकती हुई मधुर सुगधों में इस प्रकृतिसुंदर भूमिके वैभवमे और ही चार चाँद लग जाते है। और इसीसे, ऐसी हरीभरी भूमि का स्वामी बनने के अपराध के कारण नवाब को सिंहासन से नीचे खींच पटकने के लिए कोई भी 'धूर्त अंग्रेज नहीं हिचकिचायगा। डलहौसी यह बात अच्छी तरह जानता था और निदान १८५६ में अवध जन्त करने की आज्ञा घोषित की गयी किन्तु इस के लिए कारण क्या बताया गया? यही, 'कि नवाब अपने राज्य में आवश्यक सुधार करने को सिद्ध नहीं है! ___ यदि इग्लैंड, प्रजा का असतोष तथा कुशासन इन दो ही कारणों को, नवाब को गद्दीसे उतारने में काफी मानता हो, तो, फिर भारत के एक दिन के उसके शासन का भी समर्थन इंग्लैंड नहीं कर 'पायगा। चीन मे अफीम खाने का व्यसन है; अफगानिस्तान मे स्वेच्छाचारी राज खुले आम चल रहा है; यही नहीं, इग्लैंड की खुली आँखों के सामने रूसमें अत्याचार और लूटखसोट पराकाष्ठापर पहुंच गये है; तो फिर चीनी सम्राट, अफगानी अमीर या रूसी जार को उनके सिंहासन से उखाड उन देशोंपर दखल करने की हिम्मत इंग्लैडम है ? पडोसी उस के घरमे कुप्रबंध करे तो उस के हाथ पाव बांध कर उसीके मुंह मे कपडा ट्रेस कर, उस के घरपर दखल करने का हक तुम्हे कैसे प्रास हो सकता है ? किसी भी दशामें स. १८०१ की सधि के अनुसार अयोध्या का राज छीनने का कंपनी को अधिकार नहीं था। और जिस कुशासन के चारे में उन्होंने आकाश सिरपर उठा रखा था उस का दायित्व कपनी के पिठ्ठुओं के सिर ही तो था न ? डलहौसी की जीवनी तथा शासन का इतिहास लिखनेवाले श्री. आर्नोल्डने बडे आग्रहसे लिखा है कि " अवध के नवाबने इससे भी बढकर कई अपराध किये थे। एक तो वह अपने स्त्रीपुरुष सेवकोंको शाल दुपट्टे पारितोषिकके रूपमें दिया करता था 1 एकबार १२ मईको आतपबाजीका बडा समारोह किया था; यहाँ तक कि उसने एक