पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/८१

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अध्याय ४ था] ४९ [अवध दिन शाहवेगम तथा ताजवेगमको दावत दी। हॉ, इससे बढकर और क्या भयकर अपराध नवाब कर सकता था ? नवाब सवेरे पौष्टिक औपधिया भी खाता था। नवाबकी यह सब बुरी करतूतें (1) अंग्रेजोंने शान्तिसे सह ली किन्तु गहीसे नहीं उतारा था। इसके लिए अंग्रेजोंको जितने भी धन्यवाद दिये जायें, कम होंगे!! फिर भी अंग्रेजोकी सहनशीलताकी भी कोई सीमा तो है ही! 'क्यों कि एक दिन बीजाचे (स्टॅलियन) जब घोडियो से 'सभोग करता था तत्र नवाब स्वय वहाँ उपस्थित रहा। वेचारे वीजाव को लज्जा आयी होगी; उस घोडेपर तरस खाकर, ऐसे समय उपस्थित होनेके अक्षम्य अपराध के कारण अंग्रेजोने नवाब को गद्दी से हटा दिया ।" ऐसे छिछोरे और मूर्खतापूर्ण अमियोग नवानपर लगा कर फिर उसका शासन अयोग्य होने का डका ये दुष्ट-बुद्धि अंग्रेज इतिहासकार ससार भर में पीटें यह वडे अचरज की बात है! सचमुच ऐसी घटनाओं को देखने के लिए उन्हे स्वयं भारतमें न जाना चाहिये। यही क्यों ? उन्हीं के देशमें तथा उन्ही के राजमहलो में और धनी सरदारों के प्रासादों में उन्हें इससे भी बढकर अश्लील बातें देखने को मिलेंगी। और फिर अवध की घोडियो पर हुए अत्याचारो से बढकर होनेवाले भयकर बलात्कारों तथा व्यभिचारो को रोकने के लिए इन सरदारों तथा उनके शासक की जागीरो या राज्य को जन्त करने का काम ये लोग करेंगे तो हम मानेंगे कि इन्होने अपना समय अच्छे काम में लगाया, अस्तु।। डलहौसीका निर्णय नवानको सूचित करनेवाला आज्ञापत्र रेसिडेंटके पास पहुँचतेही वह सीधा राजमहलमे पहुंचा और नवाबसे कहा कि वह अपने हस्ताक्षरके साथ यह लिख दे, "मैं अपना राज्य कपनीको सौप देने को सिद्ध हूँ।" नवाबने निर्णयपत्र पदा और उसपर हस्ताक्षर करनेसे साफ इनकार किया नवाव से हस्ताक्षर कर लेने में सहायता देने के लिए रेसिडेंटने वजीर तथा रानी को रिश्वत देने का भी जतन किया; तथा साथ में यह डॉट भी दी कि नवाब हस्ताक्षर करनेपर राजी न हो जाय तो उसक लिए मुकरर पेन्शन भी उसे नहीं दी जायगी। इस गाज निरनेसे नवाब ढारें मारकर रोने लगा। किन्तु वेकार । तीन दिन बीते फिर भी