पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/८७

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रच्याय ५ वा]] ५५ [आग में घी स. १८३६ मे बगालमे पहले पहल एक अंग्रेजी पाठशाला खोली गयी। उसके उपलव्यमे मेकॉलेने निश्चित आशा प्रकट की थी कि, "आगामी ३० वर्षोके अंदर अंदर एक मी मूर्तिपूजक न बचेगा।" (स. ६. मेकॉलेका अपनी माँ को लिखा पत्र-अक्तू १८३६) हिंदुमुसलमानोके धर्ममतोंके बारेमें फिरगियोके मन इतने तीव्र द्वेष तथा ईर्ष्यासे विषाक्त हो गये थे कि बडे बडे पाश्चिमात्य लेखक शिष्टाचार की मामूली सीमाओंको भी तोडकर इन दो. धर्मोपर अवसर पातेही लज्जाहीन दोप महते थे। सारे भारत को ईसाई बना देनेमे ईस्ट इडिया कपनी इतना आग्रह क्यो रखती थी इस का कारण स्पष्ट है। उन्हें विश्वास था कि एक बार हिंदुस्थान के दोनो धर्म लोप हो जायँ कि, फिर वहॉ की राष्ट्रीय भावना अपनी मौतसे मर जायगी, और जिस का स्वत्व मर चुका हो ऐसे राष्ट्रपर राज करना जितना सरल है, उतना उन जीवित मानवोपर नहीं, जिनमे अपनत्व और आत्माभिमान जीवित है; अर्थात् यह सारा मामला धार्मिक नही, राजनैतिक था। और उनकी इसी कुटील राजनीतिमे अंग्रेजोंने उपर्युक्त कार्य के लिए तलवार का उपयोग क्यो नहीं किया, इसका कारण मिल जाता है। औरगजेब के इतिहास से इग्लैड बहुत कुछ सीख चुका था, उस युगके साम्राज्य की राजनीति की कच्ची पक्की कड़ियों को वे ठीक तरह जॉच चुके थे। जित राष्ट्र का धर्मही नष्ट करनेसे उस राष्ट्र को सदा के लिए गुलामी में रखना सरल होता है, यह रहस्य औरगजेब के इतिहास से अंग्रेजोने हृदयंगत किया था, और प्रकट रूपसे धर्मान्धता से कष्ट देने की मूख नीतिपर चलना अंग्रेजोने जान बूझकर छोड दिया। और इसी से धीरे धीरे किन्तु लगातार, हिंदुस्थान को ईसाईस्थान बना छोड़ने का धंधा, प्रकट रूपसे न सही, अप्रकटरूप से अंग्रेजों ने जारी रखा। ___ उस समय रेवरेड केनडी लिखता है:-"जबतक हमारा साम्राज्य भारत में होगा तब तक हमें कभी न भूलना चाहिये कि, किसी प्रकार की अडचनोंकी पर्वाह न करते हुए भारतभरमे ईसाईधर्मका फैलाव करनाही हमारा प्रमुख कार्य है। हिमाचलसे लका तक सारा भारत जब तक ईसाई न बनेगा और हिंदू तथा मुस्लीम धर्म की निदा करना शुरू न करेगा तब