पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/९२

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ज्वालामुखी] [प्रथम खंड ... NA . . . सेनाका कमाडर स्वय सरकारी विवरणमे लिखता है:-" मैं लगातार २८ वर्षों तक सिपाहियोंको ईसाई बनानेका काम कर रहा हूँ। मैं मानता हूँ कि इन मूर्तिपूजक जगली सैनिकोंकी आत्मा सैतानसे सुरक्षित रहे ऐसा प्रबंध करना मेरा सेनाविषयक कर्तव्य ही (मिलिटरी डयूटी) है।" एक हाथम बाइबल और दूसरे हाथ में सैनिकी आज्ञापत्रोके पुलिदे लेकर राज करनेका काम दिनरात चलाया जाता हो, उन के मातहत रहने में अपने धर्मकी जड से खुदाई होगी, उसको बचाना असन्भव कर दिया जायगा, इस प्रकारका डर सैनिकोंके मनमें घर कर जाय; तो यह डर निराधार था यह कहने का साहस कौन कर सकता है ? देशभर में लोगोंके मनमें यह बात बैठ गयी, कि यहॉके सभी धर्माको दबाकर उनके स्थानपर ईसाके धर्मका साम्राज्य स्थापित करनाही अंग्रेज सरकार की नीति है। हिंदु मुसलमानो के हृदयोंमे फिरगियोंके प्रति तीव्र द्वेषकी आग कैसे धधकती थी इसका वर्णन करते हुए एक अंग्रेज लिखता है, 'मेरे परिचित एक मौलवी, जो ऊपरसे बडा दोस्त अनता था, एकबार मृत्युगय्यापर पडा था। मैं उसके पास बैठा था ! मैने पूछा, " मौलवीसाहन आप बताइए आपकी अतिम इच्छा क्या है " ? प्रश्न सुनते ही वह बेचैन हो उठा, उसके मुंहपर विषाद छा गया। मैने जब इतना दुखी होनका कारण पूछा, तो उसने बताया, "साहब, में साफ साफ बताता हूँ कि मेरी सारी आयुष्यमे मैंने दो फिरंगियोंको भी कल नहीं किया इसी टीससे मैं दुखी हूँ !" और एक अवसरपर एक पडित और प्रतिष्ठित हिंदुने मेरे मुंहपर साफ सुनायी-" हम तो उस दिनकी प्रतीक्षाम बेचैन है कि, तुम यहासे कब टलोगे और हमारे पुरखाओको गोभा देनेवाले स्वराज्यका कारोबार फिरसे कब चालू होगा!"* ' इस प्रकार अगान्ति की लपटें देशभर में उछल रही थी तभी डलहौसीने फिर एकबार हिंदूधर्मपर एक नया आक्रमण करना शुरू किया। अंग्रेज सरकार की सभी करतूतो का समर्थन करने का व्रत लिये हुए अंग्रेज इतिहासकार भी इस ज्यादती का समर्थन नहीं कर पाते । हिंदुधर्म - * रेवरेंड केनेडी एम; ए.