पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/९८

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अध्याय ६ बॉ वह महान् यज्ञ सो, अपना राजनैतिक स्वातंत्र्य छीननेके लिए तथा अपनी पितृभ और पुण्यभूके उज्ज्वल बिरटकी रक्षाके हेतु सशस्त्र प्रतिकार करनेके लिए विषम विग्रहम उतरनेको सिद्ध रहना होगा; विना इसके दूसरा कोई चारा नहीं है। तब इस रुधिर--महोत्सबके अधिष्ठाता देवता-अनिनारायण-को सबसे पहले प्रसन्न कर लेने की हम उतावली करनी चाहिये। पुराणाकी कथा है, इद्रजितने समरागणम उतरनेके पहले इस मन्तव्यसे एक यन किया था, कि धधकर्ता अग्निज्वालाओंसे अजेय रथ प्रकट होकर उसे मिल जाय । यह सच है कि उसकी साधना ही राक्षसी और पापी होने के कारण उसका मन्तव्य पूरा न हो सका। किन्तु हमारी साधना, हमारा आदग, अत्यंत न्यायसगत और परमपवित्र होनेसे हमारे इस महान् यसमें कोई स्कावट पैदा होनेकी थोडी भी सम्भावना नहीं हैं। हम इस बातको पूरी तरह जानते है, कि जिसे हम सत्य समझते है और उसके लिए अपने प्राणोंकी बाजी लगानेपर उतारू होते है, वह सत्य अपने स्थानम स्वभावसे भलेही पवित्र और न्यायपूर्ण हो, फिर भी उसका पृष्ठपोषण करनेको उतनीही मात्राम शक्तिबल खडा नहीं करते तबतक वह सत्य दावेसे विजयी होता हो, सो बात नहीं है ! तो भी अपनी शक्तिभर पूरी तरह सत्यके लिए अझनेमें भी सच्चे रणबॉकुरेको स्वर्गीय रणावेगसे अभिभूत असीम वीरानंद ही भरपूर मिल जाता है। INDIA NA AASHAN I reORS DISTERIES