पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/९९

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अध्याय ६ वा] [वह महान् यज्ञ तो फिर, प्रज्वलित करो उस यज्ञवेदी को ! क्यो कि, अमिनारायण का वरदान हमें प्राप्त होना अत्यत आवश्यक है। यज्ञवेदीपर अतिविगाल और अत्यंत गहरो यज्ञवेदी अच्छी तरहसे खोद डालो। देखो, राष्ट्रीय क्रोधानिकी लपटें एक दूसरेपर कूद रही है ! इस यज्ञ का संकल्प बहुत पहले, याने १७५७ में, किया जा चुका है। इसीसे इस यज्ञ की प्रथम आहुति का सम्मान पलासी की रणभूमि को देकर, धकेल दो उसे इस वेदीमे।। ___ कहाँ है वह पंजाब का सिरताज कोहेनूर ? इस काम में हाथ बॅटाने के लिए डलहौसीने स्वय आगे बढकर उस कोहेनूर को उस के असली स्वामी खालसा वीर गुरु गोविदसिगजी से कब का लूट लिया है। हिंदुस्थान के सार्वभौमत्वका एकमात्र प्रतीक, प्राचीन ऐतिहासिक कालसे कीर्तिमान् इस निर्मल, शान्त आभा-किरणोंके कोहेनूर हीरे के अतिरिक्त और कौनसी आहुति इस लपलपाती अग्निज्वाला को भडकाने मे अधिक समर्थ होगी? इसलिए धकेल दो उस पंजाब के कोहेनूर को उस यज्ञवेदीम! अब इस के बाद घरमा की आहुति पड़नी चाहिये। इससे वहाँ के राजा थोत्रा को भगा दो राज की सीमा के बाहर और धकेल दो यज्ञज्वाला की ऊँची उठी अग्निशिखा मे! ___ अरे ! उस ओर स्वय छत्रपति शिवाजी महाराजका सिहासन जो है, उसे क्यों कर भुले हो । सातारेमें यों ही उसे सडते रहने देनेमे क्या गौरव ? उसके सर्वश्रेष्ठ होनेका सम्मान उसे अवश्य मिलही जाना चाहिये । इससे, हे परम दयामयी ऑग्ल सत्ते! अपने फडकते हुए पैने नाखूनोंसे अधिकसे अधिक विध्वस करो, सातारेके सिहासनको मिट्टीमे मिला दो (जहाँ उसके स्वामी सुखसे राज करेंगे) और, उस राष्ट्रीय क्रोधकी अग्नि और धधककर महाभीषण हो जाय इसलिए धकेल दो सातारेका सिंहासन ! स्वाहाऽ! केवल नागपूरकी गद्दीकी आहुति राष्ट्रीय क्रोधकी सहारपरक अग्निदेवताके लिए तो क्षुद्र वस्तु होगी! सो इस गद्दीके साथ साथ नागपुरके उदास राजमहल, हाथी, घोडे और साथ रानियोंको भी, मात्र उनसे बलपूर्वक छीने गये जेवरोंके साथही नहीं, बल्कि उनके भयंकर आत आक्रोशक