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तालाब के आगौर में लगा एक स्तंभ


सागर है तथा कुंडम गांव में कुंडम सागर। सन् १९०७ में गजेटियर के तालाब के माध्यम से इस देश का 'व्यवस्थित' इतिहास लिखने घूम रहे अंग्रेज़ ने भी इस इलाके में कई लोगों से यह किस्सा सुना था और फिर देखा-परखा था इन चार बड़े तालाबों को। तब भी सरमन सागर इतना बड़ा था कि उसके किनारे पर तीन बड़े-बड़े गांव बसे थे और तीनों गांव इस तालाब को अपने-अपने नामों से बांट लेते थे। पर वह विशाल ताल तीनों गांवों को जोड़ता था और सरमन सागर की तरह स्मरण किया जाता था। इतिहास ने सरमन, बुढ़ान, कौंराई और कूड़न को याद नहीं रखा लेकिन इन लोगों ने तालाब बनाए और इतिहास को उनके किनारे पर रख दिया था।

देश के मध्य भाग में, ठीक हदय में धड़कने वाला यह किस्सा उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम - चारों तरफ किसी न किसी रूप में फैला हुआ मिल सकता है और इसी के साथ मिलते हैं सैंकड़ों हज़ारों तालाब। इनकी कोई ठीक गिनती नहीं है। इन अनगिनत तालाबों को गिनने वाले नहीं, इन्हें तो बनाने वाले लोग आते रहे और तालाब बनते रहे।

किसी तालाब को राजा ने बनाया तो किसी को रानी ने, किसी को