विचित्र गोला ताल का परिचय हमें श्री शरद जोशी के कारण मिला है। उन्हीं ने जयबाण तोप और फिर उससे २० मील दूर गिरे गोले से बने इस ताल की यात्रा का प्रबन्ध किया था।
दशफला पद्धति की मौखिक जानकारी बापटला, आंध्र प्रदेश के श्री जी. के. नारायण से प्राप्त हुई है। गांधी शांति केन्द्र, हैदराबाद से आंध्र के पर्यावरण पर तेलगू में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इस क्षेत्र के तालाबों का विवरण है। सांकल पद्धति से जुड़े तालाब कई जगह बनते थे। दक्षिण के अलावा बुंदेलखंड, राजस्थान और गुजरात में भी ये देखने मिलते हैं। मध्य प्रदेश के ऐसे तालाबों की जानकारी 'नई दुनिया' इन्दौर के एक नवम्बर, ९१ के अंक में श्री रामप्रताप गुप्ता के लेख में मिलती है। उनका पता है: शासकीय महाविद्यालय रामपुरा, मंदसौर, मध्य प्रदेश।
मुरैना, मध्य प्रदेश के पड़ावली गांव में सात स्तर के तालाब की सांकल थी। पड़ावली की जानकारी के लिए ग्वालियर साइंस सेंटर के श्री अरुण भार्गव से एल.बी.१७५, दर्पण कालोनी, ग्वालियर पर सम्पर्क किया जा सकता है। छिपीलाई शब्द का सुन्दर उपयोग पहली बार हमें उस्ताद श्री निजामुद्दीन से सुनने मिला। इस प्रसंग में छत्तीसगढ़ और बिहार के तालाबों के नामों को समझने में हमें क्रमश: श्री राकेश दीवान और श्री निर्मलचन्द्र से सहायता मिली है। भोपाल के ताल का विस्तृत विवरण श्री ब्रजमोहन पांडे की पुस्तक से मिल सकता है। इसमें देश के कई अन्य प्राचीन सरोवरों की भी पर्याप्त जानकारी है। पलवल स्थान की सूचना हमें दिल्ली में लोक कलाकारों के बीच काम कर रही संस्था सारथी के श्री भगवतीप्रसाद हटवाल से प्राप्त हुई। पता है: सारथी, फ्लैट नं. ४, शंकर मार्केट, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली - ११० ० ०१ ।
और झुमरी तलैया नाम से हम देश के हजारों श्रोताओं की तरह आकाशवाणी के विविध भारती कार्यक्रम के कारण परिचित हुए हैं।
इस हिस्से को लिखने में हमें राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर तथा बाड़मेर जिलों के गजेटियर तथा इन्हीं क्षेत्रों की जनगणना रिपोर्ट, सन् १९८१ से बहुत मदद मिली है। इन सन्दर्भों के अलावा इन इलाकों की एकाधिक यात्राओं से मरुभूमि का, वहां
—দ্র্যােলা। —
१०१ आज भी खरे हैं
पृष्ठ:Aaj Bhi Khare Hain Talaab (Hindi).pdf/१०४
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