१c २ आज भी खरे हैं
के समाज का और पानी से संबंधित उनकी बुद्धिमत्ता का आभास हो सका है। वहां की अधिकांश यात्राएं अनुपम मिश्र को के. के. बिड़ला प्रतिष्ठान से राजस्थान में जल संग्रह विषय पर मिली एक शोधवृत्ति के अंतर्गत की जा सकी हैं।
जैसलमेर शहर और उसके आसपास बने तालाबों की प्रारम्भिक जानकारी श्री नारायण लाल शर्मा द्वारा लिखित 'जैसलमेर' नामक पुस्तिका से मिली है। प्रकाशक हैं: गोयल ब्रदर्स, सूरज पोल, उदयपुर।
इन क्षेत्रों के बारे में समय-समय पर श्री ओम थानवी, श्री भगवानदास माहेश्वरी, श्री दीनदयाल ओझा और राजस्थान गो सेवा संघ के श्री भंवरलाल कोठारी से हुई बातचीत से भी हमें बहुत मदद मिली है। राजस्थान गो सेवा संघ का पता है: रानी बाजार, बीकानेर।
घड़सीसर तालाब, गड़सीसर या गड़ीसर नाम से भी पुकारा जाता है। इस तालाब के किनारे बने मंदिर, घाट, रसोइयां, चौकी, पोल और तालाब पर जमने वाले मेले का वर्णन हमें श्री उम्मेद सिंह महेता की एक गज़ल से मिला है। यह गज़ल 'जैसलमेरीय संगीत रत्नाकर, पहिला हिस्सा' नामक पुस्तक में है। पुस्तक लखनऊ के नवलकिशोर प्रेस से सन् १९२९ में प्रकाशित हुई थी। यह हमें जैसलमेर के श्री भगवानदास माहेश्वरीजी के निजी संग्रह से मिली है। देश के एक विशिष्ट तालाब पर ४६ बरस पहले जैसलमेर में लिखी गई और लखनऊ से छपी यह दुर्लभ सामग्री एक विशेष महत्व रखती है। इसलिए हम यहां इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहे हैं:
अथ तालाब गड़सीसर की गजल लिखते
कवित्त
तख्त जेसांन ताको जानत है जहांन ताको सब मुलकन में नाम तमाम अति भारी है। किल्ला है भूरगढ़ भूप जवाहिर सिंह अधिक छबि प्यारी और फोज दल अपारी है। रईयत मतवारी छटा गड़सीसर की भारी जहां भरत नीर लाखों और किरोड़ पनिहारी है। महेता कहे उम्मेदसिंह वाहो जेसाण नाथ रियासत तुम्हारी बादशाहत से नियारी है।
पृष्ठ:Aaj Bhi Khare Hain Talaab (Hindi).pdf/१०५
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