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------नींव से शिखर तक------


आज अनपूछी ग्यारस है। देव उठ गए हैं। अब अच्छे-अच्छे काम करने के लिए किसी से कुछ पूछने की, मुहूर्त दिखवाने की ज़रूरत नहीं है। फिर भी सब लोग मिल-जुल रहे हैं, सब से पूछ रहे हैं। एक नया तालाब जो बनने वाला है।...

पाठकों को लगेगा कि अब उन्हें एक तालाब के बनने का - पाल बनने से लेकर पानी भरने तक का पूरा विवरण मिलने वाला है। हम खुद ऐसा विवरण खोजते रहे पर हमें वह कहीं मिल नहीं पाया। जहां सदियों से तालाब बनते रहे हैं, हज़ारों की संख्या में बने हैं- वहां तालाब बनाने का पूरा विवरण न होना शुरु में अटपटा लग सकता है, पर यही सबसे सहज स्थिति है। 'तालाब कैसे बनाएं' के बदले चारों तरफ 'तालाब ऐसे बनाएं' का चलन चलता था। फिर भी छोटे-छोटे टुकड़े जोड़े तो तालाब बनाने का एक सुन्दर न सही, कामचलाऊ चित्र तो सामने आ ही सकता है।

...अनपूछी ग्यारस है। अब क्या पूछना है। सारी बातचीत तो पहले हो ही चुकी है। तालाब की जगह भी तय हो चुकी है। तय करने वालों की आंखों में न जाने कितनी बरसातें उतर चुकी हैं। इसलिए वहां ऐसे सवाल नहीं उठते कि पानी कहां से आता है, कितना पानी आता है, उसका कितना भाग कहां पर रोका जा सकता है। ये सवाल नहीं हैं, बातें हैं सीधी-सादी, उनकी हथेलियों पर रखी। इन्हीं में से कुछ आंखों ने इससे पहले भी कई तालाब खोदे हैं। और इन्हीं में से कुछ आंखें ऐसी हैं जो पीढ़ियों से यही काम करती आ रही हैं।

यों तो दसों दिशाएं खुली हैं, तालाब बनाने के लिए, फिर भी जगह