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बड़ा सरोवर बना रहे थे और उनके कारण अनेक ब्राह्मण भी मिट्टी खोद रहे थे तो देवरुख नामक स्थान से आए ब्राह्मणों के एक समूह ने उनका विरोध किया। तब वासुदेव ने उन्हें शाप दिया कि जो भी ब्राह्मण तुम्हारा साथ देंगे वे तेजहीन होकर लोगों की निंदा के पात्र बनेंगे। उस चितपावन के शाप से बाद में ये लोग देवरुख ब्राह्मण कहलाए। देवरुख ब्राह्मण तेजहीन हुए कि नहीं, लोक निंद्य बने कि नहीं, पता नहीं। लेकिन चितपावन ब्राह्मण अपने क्षेत्र में और देश में भी हर मामले में अपनी विशेष पहचान बनाए रहे हैं।

नायकों के साधन भी पूजनीय बन जाते हैं।

कहा जाता है कि पुष्करणा ब्राह्मणों को भी तालाब ने ही उस समय समाज में ब्राह्मण का दर्जा दिलाया था। जैसलमेर के पास पोकरन में रहने वाला यह समूह तालाब बनाने का काम करता था। उन्हें प्रसिद्ध तीर्थ पुष्करजी के तालाब को बनाने का काम सौंपा गया था। रेत से घिरे बहुत कठिन क्षेत्र में इन लोगों ने दिन रात एक करके सुंदर तालाब बनाया। जब वह भरा तो प्रसन्न होकर इन्हें ब्राह्मण का दर्जा दिया गया। पुष्करणा ब्राह्मणों के यहां कुदाल रूपी मूर्ति की पूजा की जाती रही है।

अपने पूरे शरीर पर राम नाम का गुदना गुदवाने और राम-नाम की चादर ओढ़ने वाले छत्तीसगढ़ के रामनामी तालाबों के अच्छे जानकार थे। मिट्टी का काम राम का ही नाम था इनके लिए। रायपुर, बिलासपुर और रायगढ़ ज़िलों में फैले इस संप्रदाय के लोग छत्तीसगढ़ क्षेत्र में घूम-घूम कर तालाब खोदते रहे हैं। संभवतः इस घूमने के कारण ही इन्हें बंजारा भी मान लिया गया था। छत्तीसगढ़ में कई गांवों में लोग यह कहते हुए मिल जाएंगे कि उनका तालाब बंजारों ने बनाया था। रामनामी परिवारों में हिन्दू होते हुए भी अंतिम संस्कार में अग्नि नहीं दी जाती थी, मिट्टी में दफनाया जाता था क्योंकि उनके लिए मिट्टी से बड़ा और कुछ नहीं। जीवन-भर राम का नाम लेकर तालाब का, मिट्टी का काम करने वाले के लिए जीवन के पूर्ण विराम की इससे पवित्र और कौन-सी रीति होगी?

२७ आज भी खरे हैं तालाब