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में तो अधिक वर्षा वाले गोवा और कोंकण में समान रूप से मिलता है। उत्तर में इनका नाम सांकल या सांखल ताल है तो दक्षिण में दशफला पद्धति।

तालाबों की यह सांखल मोटे तौर पर एकाधिक यानी दो से लेकर दस तालाबों तक जाती है। सांखल दो तालाबों की हो और दूसरा तालाब पहले के मुकाबले बहुत ही छोटा हो तो वह छिपीलाई कहलाता है। यानी पहले बड़े ताल के पीछे छिप गई तलाई।

लेकिन जो ताल सामने है और खूब सुंदर भी, उसका नाम चाहे जो हो, उसे सगुरी ताल भी कहते थे। जिस ताल में मगरमच्छ रहते थे, उसका नाम चाहे जितने बड़े राजा के नाम पर हो, लोग अपनी सावधानी के लिए, चेतावनी के लिए उसका नाम मगरा ताल, नकया या नकरा ताल रख लेते थे। नकरा शब्द संस्कृत के नक्र यानी मगर से बना है। कुछ जगह गधया ताल भी हैं। इनमें मगर की तरह गधे नहीं रहते थे! गधा बोझ ढोने का काम करता है। एक गधा मोटी रस्सी का जितना बोझ उठा सके, उतनी रस्सी की लंबाई बराबर गहरा ताल गधया ताल कहलाता था। कभी-कभी कोई दुर्घटना या घटना भी तालाब का पुराना नाम मिटा देती। यहां-वहां बह्मनमारा ताल मिलते हैं। इनका नाम कुछ और रहा होगा, पर कभी उनमें किसी ब्राह्मण के साथ दुर्घटना घट गई तो बाद में उन्हें बह्मनमारा की तरह ही याद रखा गया। इसी तरह का एक और नाम है बैरागी ताल। इसकी पाल पर बैठकर कोई कभी बैरागी बन गया होगा!

नदियों के किनारे नदया ताल मिलते हैं। ऐसे ताल अपने आगौर से नहीं, नदी की बाढ़ के पानी से भरते थे। नदियों के बदले किसी पाताली स्रोत से जुड़े ताल को भूफोड़ ताल कहते थे। ऐसे तालाब उन जगहों में ज़्यादा थे जहां भूजल का स्तर काफ़ी ऊंचा बना रहता था। उत्तर बिहार में अभी भी ऐसे तालाब हैं और कुछ नए भी बनाए गए हैं।

रख-रखाव के अच्छे दौर में भी कभी-कभी किसी खास कारण से एकाध तालाब समाज के लिए अनुपयोगी हो जाता था। ऐसे तालाब हाती ताल कहे जाते थे। हाती शब्द संस्कृत के हत शब्द से बना है और इसका अर्थ है नष्ट हो जाना। 'हत तेरे की' जैसे चालू प्रयोग में भी यह शब्द हत तेरे भाग्य की, यानी तेरा भाग्य नष्ट हो जाए जैसे अर्थ में है। हत-प्रभ और हत-आशा यानी हताशा भी इसी तरह बने हैं। इस प्रकार हाती ताल छोड़ दिए गए तालाब के लिए अपनाया गया नया नाम था। लेकिन हाथी ताल तालाब बिलकुल अलग नाम है—ऐसा तालाब जिसकी गहराई हाथी जितनी हो।

५४ आज भी खरे हैं तालाब