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ने पाल पर खड़े घड़सी पर घातक हमला किया। राजा की चिता पर रानी का सती हो जाना उस समय का चलन था। लेकिन रानी विमला सती नहीं हुई। राजा का सपना रानी ने पूरा किया।

रेत के इस सपने में दो रंग हैं। नीला रंग है पानी का और पीला रंग है तीन-चार मील के तालाब की कोई आधी गोलाई में बने घाट, मंदिरों, बुर्ज और बारादरी का। लेकिन यह सपना दिन में दो बार बस केवल एक ही रंग में रंगा दिखता है। उगते और डूबते समय सूरज घड़सीसर में मन-भर पिघला सोना उंडेल देता है। मन-भर यानी माप-तोल वाला मन नहीं, सूरज का मन भर जाए इतना!

लोगों ने भी घड़सीसर में अपने-अपने सामर्थ्य से सोना डाला था। तालाब राजा का था पर प्रजा उसे संवारती, सजाती चली गई। पहले दौर में बने मंदिर, घाट और जलमहल का विस्तार होता गया। जिसे जब भी जो कुछ अच्छा सूझा, उसे उसने घड़सीसर में न्यौछावर कर दिया। घड़सीसर राजा-प्रजा की उस जुगलबंदी में एक अद्भुत गीत बन गया था।

एक समय घाट पर पाठशालाएं भी बनीं। इनमें शहर और आसपास के गांवों के छात्र आकर रहते थे और वहीं गुरु से ज्ञान पाते थे। पाल पर एक तरफ छोटी-छोटी रसोइयां और कमरे भी हैं। दरबार में कचहरी में जिनका कोई काम अटकता, वे गांवों से आकर यहीं डेरा जमाते। नीलकंठ और गिरधारी के मंदिर बने। यज्ञशाला बनी। जमालशाह पीर की चौकी बनी।

पहले जल और फिर अन्न से भरता है जैतसर

६३ आज भी खरे हैं तालाब