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महल के टुकड़े सी लगती हैं और जब यह भर जाता है तो लगता है कि तालाब में छतरीदार बड़ी-बड़ी नावें तैर रही हैं।
जैसलमेर मरुभूमि का एक ऐसा राज रहा है, जिसका व्यापारी-दुनिया में डंका बजता था। फिर मंदी का दौर भी आया पर जैसलमेर और उसके आसपास तालाब बनाने का काम मंदा नहीं पड़ा। गजरूप सागर, मूल सागर, गंगा सागर, गुलाब तालाब और ईसरलालजी का तालाब-एक के बाद एक तालाब बनते चले गए। यह कड़ी अंग्रेज़ों के आने तक टूटी नहीं थी।
६९ आज भी खरे हैं तालाब