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चियांग् काई-शेक
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१९१७ की चीनी क्रान्तियो मे भाग लिया। सन् १९१७ से १९२२ तक डा० सन यात-सेन के सहयोगियो में रहे। सन् १९२३ में मास्को मिलिटरी ऐकेडेमी मे गये। सन् १९२४ में कैन्टन के पास व्हाम्पू में चीनी मिलिटरी ऐकेडेमी के अध्यक्ष हुए। इस संस्था के सैनिको को संगठित कर आपने, सन् १९२५ में, दक्षिण चीन के प्रतिद्वन्द्वी जनरलो के विद्रोह का दमन किया। जब डा० सन यात-सेन की मृत्यु होगई तो चियांग् को मिन तांग् के नेता होगये। साम्यवादियो (Communists) से सहयोग किया, प्रमुख सेनापति (Generalissimo) बने, और सन् १९२६ मे शंघाई पर आधिपत्य जमा लिया। मार्च १९२७ में उनका साम्यवादियो से तीव्र मतभेद हो गया, अतएव शंघाई मे आपने बहुसख्या में उनका वध किया। चियांग् ने नानकिंग में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना, पुरानी साम्यवादी को मिन तांग्-सरकार का विरोध करने के उद्देश्य से, की। अन्त में दोनो सरकारे मिल गई और चियांग् को अधिनायक स्वीकार किया गया। उत्तरी चीन की विजय के लिये प्रस्थान किया और सन् १९२८ में चियांग् काई-शेक ने वहाँ के सैनिक सर्वेसर्वा मार्शल चांग् सो-लिन को पराजित किया और सम्पूर्ण चीन देश नानकिंग्-सरकार के अधीन अधीन कर दिया। इस तरह चियांग् प्रधान मन्त्री और अधिनायक हो गये। परन्तु गृह-कलह जारी रहा। सन् १९३१ में चियांग् ने प्रधान-मन्त्री के पद से त्याग-पत्र दे दिया। सन् १९३२ मे वह फिर उसी पद पर नियुक्त किये गये। साम्यवादी सेनाएँ और कैन्टन में स्थापित वामपक्षीय सरकार इस समय चियाग् का विरोध कर रहे थे। साम्यवादियो ने दक्षिण के दो प्रान्तो में सोवियत-शासन स्थापित कर लिया था। चियांग् ने इन प्रान्तो पर सात बार चढ़ाई की और सन् १९३४ मे उन्हे परास्त कर दिया। कम्युनिस्ट सेना भाग तो गई पर उसने पश्चिम के केज़ेकुआन प्रान्त मे जाकर सोवियत सत्ता स्थापित करदी। इसके बाद चियांग् ने जापानियो के साथ समझौता करने की कोशिश की, जिन्होंने मंचूरिया पर क़ब्ज़ा कर लिया था तथा शंघाई पर आक्रमण कर दिया था। सन् १९३६ में चियाग् को एक प्रतिद्वन्द्वी जनरल ने पकड लिया, परन्तु बाद में समझौता होगया और वह छोड़ दिये गये। जब जुलाई १९३७ में जापान ने चीन पर हमला किया तब चियांग् काई-शेक ने प्रधान मन्त्री पद से त्याग-पत्र दे