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अग्रगामी दल
 

यूनियन का लक्ष्य, रूस को छोड़कर, समस्त यूरोप में एक संघ कायम करना था। प्रारम्भ में इस आंदोलन को कुछ सफलता मिली। परन्तु कुछ दिनों के बाद इसका अन्त होगया।


अखिल स्लैववाद—इस आन्दोलन का जन्मदाता हर हर्डर नामक एक जर्मन विचारक है। इसका जन्म १९वी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुआ था। इसका उद्देश्य समस्त स्लैव जनता को एक राज्य के अधिक करना था। सबसे प्रथम स्लैव कांग्रेस सन १८४१ में हुई थी। इसके बाद रूस ने अखिल स्लैववाद आन्दोलन में प्रमुख भाग लिया। उसने इस आन्दोलन को अपने साम्राज्यवाद की प्रगति के लिए एक साधन बनाया। पोलैण्ड, यूक्रेन तथा बल्कान राज्यों और आस्ट्रिया पर अपना आतंक जमाने के लिए रूस भी इस आन्दोलन में कुद पड़ा। आस्ट्रिया तथा बल्कान राज्यों के स्लैव अपने सभ्य-मण्डल लेकर रूस को जाया करते थे। रूसी साहित्य में एक नवीन विचारधारा चल पड़ी थी जिसके अनुसार यूरोप में स्लैवा को एक पवित्र 'मिशन' माना जाने लगा। सोकल कीड़ा-संघ समस्त स्लैव लोगों में अखिल स्लैववादी विचारधारा का प्रचार करने लगा। बहुत-सी स्लैव कांग्रेसे भी हुई, परन्तु रूसी राज्य-क्रांति (१९१७) के साथ इस आन्दोलन का भी अन्त हो गया। इस आन्दोलन के प्रभाव के कारण ही बल्कान देशों में से तुर्कों का निष्कासन संभव होसका था तथा आस्ट्रिया का साम्राज्य छिन्न- भिन्न होगया। यह आन्दोलन एक संगठित राजनीतिक आन्दोलन के रूप में नहीं रहा। प्रत्युत् यह तो एक भावात्मक लहर के रूप में ही रहा। विगत विश्व-युद्ध के बाद स्लैव जनता में पारस्परिक-सहानुभूति की भावना का उदय हुआ, परन्तु स्लैव जनता के आपसी झगड़ो के कारण इसका व्यापक प्रभाव न पड़ा।


अगादिर—यह पश्चिमी मरक्को का एक बंदरगाह है जो सन् १९११ के मरक्को-संकट के समय से प्रसिद्ध होगया है।


अग्रगामी दल—भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के त्रिपुरी-अधिवेशन (मार्च सन् १९३९) के बाद जब कांग्रेसी नेताओं के नीति-संबंधी आंतरिक झगड़ों के कारण कांग्रेस के राष्ट्रपति श्री सुभाषचंद्र बोस ने राष्ट्रपतित्व से त्याग-पत्र