है, जो समुद्र के भीतर चलता और टारपीडो-बोट को विनष्ट कर देता है।
ट्रात्स्की, लियो देविदोविच--प्रमुख क्रान्तिकारी रूसी नेता। जन्म १८७७ ई०। ट्रात्स्की एक यहुदी किसान का पुत्र था। कीफ विश्वविद्यालय मे शिक्षा प्राप्त की। उसका असली नाम व्रान्स्टीन था, परन्तु उसने ट्रात्स्की नाम रख लिया और क्रान्तिकारी दल में शामिल हो गया। सन् १८९८ मे ज़ारशाही ने उसे साइवेरिया मे निर्वासित कर दिया। सन् १९०२ मे ट्रात्सकी नाम से पासपोर्ट प्राप्त कर लिया और इँगलैण्ड को भाग गया। वहाँ उसकी दो क्रान्तिकारियो, प्लेख़ानोव तथा लेनिन, से भेट हुई, जो रूस की ज़ारशाही का खात्मा करने की युक्ति सोच रहे थे। सन् १९०५ मे वह रूस वापस आया। जब वह सेंटपीटर्सबर्ग की एक मजदूर-सभा में अध्यक्ष के पद से सभा-संचालन कर रहा था, तब उसे पुन: गिरफ़्तार करके निर्वासित कर दिया गया। सन् १९०५ से १९१४ तक उसने यूरोप के प्रत्येक देश में क्रान्तिकारी दल का संगठन किया।
जब पिछला विश्वयुद्ध छिड़ा तब वह जर्मनी में था। उसने वहाँ युद्ध के कारणों पर एक पुस्तक लिखी, जिसमे कै़सर-सरकार की कड़ी आलोचना की। उसे गिरफ़्तार किया गया और ८ मास की कै़द की सज़ा दी गई। रिहा होकर वह फ्रान्स गया। फ्रान्स से भी उसका निर्वासन हुआ। फ्रान्स के बाद उसने स्पेन जाना तय किया, किन्तु कामयाबी न मिली। सन् १९१३ में वह कनाडा में नज़रबन्द रहा और वहाँ उसने 'न्यू वर्ल्ड' (नई दुनिया) का सम्पादन किया। जब रूस में सन् १९१७ के मार्च मास मे क्रान्ति हुई, तब उसे स्वदेश वापस लौटने की आज्ञा मिली, किन्तु हैलीफैक्ल मे ब्रिटिश अधिकारियों ने उसे गिरफ़्तार कर लिया और वह तब रिहा किया गया जब रूस की अस्थायी सरकार ने उसकी रिहाई के लिए कहा। अपने प्रवास-काल में लैनिन से उसका निरन्तर सम्बन्ध बना रहा। जुलाई १९१७ मे उसने लैनिन की बोल्शेविक पार्टी में शामिल होना स्वीकार किया। अक्टूबर १९१७ में रूस में जो सफल और व्यापक राजा-क्रान्ति हुई, उसमे लैनिन के बाद ट्रात्स्की ने सबसे अधिक भाग लिया। इसी क्रान्ति में जारशाही का पतन और क्रान्तिकारियो की विजय हुई। क्रान्ति के बाद वह सोवियट रूस के वैदेशिक विभाग का मंत्री नियुक्त