किया गया। इसके बाद युद्ध-मत्री बनाया गया। उसने लाल सेना का संगठन किया। सत् १९२३ तक साम्यवादी-दल के दूसरे नेताओ का, जिनमे साम्यवादी दल (Communist Party) का मन्त्री स्तालीन मुख्य था, ट्रात्स्की से बहुत गहरा मतभेद हो गया। यद्यपि रूसी क्रान्ति के दो ही नेता--लैनिन और ट्रात्स्की--ससार में प्रसिद्ध थे, किन्तु साम्यवादी-दल मे उसका कोई प्रभाव नहीं था क्योकि उसने सन् १९१७ मे ही इस दल की सदस्यता स्वीकार की थी। स्तालीन ने उस पर दोषारोप किये और १९२४ ई० में, लैनिन की मृत्यु के बाद, ट्रात्स्की को उसने नेतृत्व से निकाल ही दिया। उसे युद्ध-मत्रित्व-त्याग के लिये वाय्य किया गया। सन् १९२५ में उसने त्यागपत्र दे दिया। उसे काकेशस मे निर्वासित कर दिया गया। सन् १९२७ मे उसे फिर बुला लिया गया, पर उसका पक्ष बढते देख ट्रात्स्की को साम्यवादी-दल से पृथक् करके बाद में उसको रूस से भी निर्वासित कर दिया गया। वह टर्की में जाकर रहा। १९३४ मे फ्रान्स चला गया और बाद में १९३६ तक नार्वे में टिका रहा। रूसी सरकार ने ट्रात्स्की के निष्कासन के लिये नार्वे पर दबाव डाला। अन्त में वह
मैक्सिकों चला गया। यहीं एक देश था जो उसे रख लेने पर राजी हुआ। अन्त समय तक ट्रात्स्की वही रहा और निरन्तर स्तालीन की नाति को समाजवाद (Communism) के सिद्धान्तों के विपरीत बताता रहा। लैनिन के बाद सबसे विद्वान तथा योग्य नेता ट्रात्स्की ही था। १९३७ मे उसने सभी साम्यवादी शासन-सत्ता के विरोध मे 'The Revolution Betrayed' (क्रान्ति के प्रति