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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/१५१

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तुर्किस्तान (टर्की)
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के हैं, सिर्फ १० स्वतंत्र हैं। सेना में १०,००,००० सैनिक हैं। यद्यपि तुर्किस्तान में साम्यवादियो का दमन होता रहता है, तथापि वह १९२० से रूस से मैत्री-संबंध बनाये हुए है। दरेदानियाल का रक्षक होने के कारण तुर्की की मित्रता रूस के लिये ज़रूरी है। यूनान से भी उसकी मैत्री है। बलकान-राष्ट्रों में उसकी दिलचस्पी है। तुर्किस्तान बलकान में जर्मन-प्रसार का विरोधी है, इसलिये कि जर्मनी तुर्की के रास्ते मध्य-पूर्व या मोसल के तैल-कूपो तक न बढ़ सके। मई १९२९ में फ्रान्स तथा ब्रिटेन ने तुर्किस्तान को यह गारंटी दी थी कि उस पर आक्रमण होने पर यह दोनों देश उसकी रक्षा करेंगे। १९ अक्टूबर १९३९ को फ्रान्स-ब्रिटेन-तुर्की में १५ वर्षों के लिए पारस्परिक सहायता देने की संधि भी हो चुकी है।

इस संधि, का आशय यह है कि यदि किसी योरपियन राष्ट्र ने तुर्किस्तान पर हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप भूमध्यसागर में युद्ध हुआ, जिसमे तुर्किस्तान भी संलग्न हुआ, तो फ्रान्स तथा ब्रिटेन उसकी सहायता करेंगे। इसी प्रकार तुर्की ब्रिटेन तथा फ्रान्स की सहायता करेगा, परन्तु सिर्फ रूस के विरोध नही। इटली के वर्तमान युद्ध में सलग्न होने के उपरान्त भी तुर्की तटस्थ रहा। धुरी राष्ट्रों का वह विरोधी है। इटली के विरुद्ध यूनान को भी उसने ग़ैर-सरकारी तौर पर मदद दी। किन्तु अप्रैल '४१ में जब हिटलर ने यूगोस्लाविया और यूनान पर धावा किया तो तुर्की ने बलकान-राष्ट्रों से सहयोग करने से इनकार कर दिया। इससे कुछ ही पूर्व, २४ माचे '४१ को, उसने सोवियत रूस से आक्रमण और तटस्थता की सन्धि भी की। बलकान में हिटलर की विजय के बाद तुर्की का


रुख जर्मनी के प्रति दोस्ताना होगया।

पिछली शताब्दी के आदि से गत महायुद्ध के अन्त और अतातुर्क कमाल के उद्भव के समय तक तुर्किस्तान को योरपियन