२५,००,००० टन तेल कोयले से वहाँ निकाला गया किन्तु यह तेल प्राकृतिक तेल से चौगुना महँगा पड़ा।
तोजो—सन् १९३६ से जापान जर्मनी का पदानुसरण कर रहा है। इसी नीति के कारण वह कामिन्टर्न-विरोधी दल में शामिल हुआ। किन्तु १९३९ के अगस्त में, जब जर्मनी ने सोवियत रूस से अनाक्रमण-सन्धि की तो जापान की राजनीति में शीघ्रतापूर्वक परिवर्तन हुए और जापान के तत्कालीन प्रधान मन्त्री बैरन हिरानूमा की सरकार ने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वह कम्युनिस्ट इन्टरनेशनल की विरोधिनी थी। तब अधिक उदार विचारवाले, एक सामरिक नेता, जनरल आबे ने मन्त्रिमण्डल बनाया। किन्तु आबे-सरकार भी अधिक दिन न टिकी और जनवरी १९४० में नौसेनापति (ऐडमिरल) योनाई ने जापानी मन्त्रिमण्डल बनाया। योनाई ने घोषणा की कि उसकी सरकार चीन के मामले के निपटारे पर अधिक ध्यान देगी और योरपीय युद्ध से अलग रहेगी।
किन्तु, जून १९४० में फ्रान्स का पतन होते ही, जापान की वैदेशिक नीति एकदम उग्र होउठी। योनाई मन्त्रिमण्डल ने भी त्यागपत्र दिया, और प्रिन्स फ़्यूमीमारो कोनोय ने सरकार बनाई। जापान में ब्रिटिश-विरोधी भावना तीव्रतर होउठी। अक्तूबर १९४० में कामिन्टर्न-विरोधी (रोम-बर्लिन-तोक्यो)—त्रिगुट, त्रिराष्ट्र-सन्धि के रूप में पुनर्निर्मित हुआ। किन्तु फिर भी अप्रैल १९४१ में जापान और सोवियत रूस के बीच, इन दोनों में से किसी राष्ट्र पर आक्रमण होने की दशा में, पारस्परिक निरपेक्षता-सन्धि हुई। वास्तव में जापान, जून १९४१ मे रूस पर जर्मन-आक्रमण होने के समय, निरपेक्ष रहा। किन्तु ज्योंही नात्सी सेनायें रूस में आगे बढ़ती दिखाई दीं त्योंही जापान का सामरिक दल अधिक क्रियाशील होउठा, और १५ अक्तूबर १९४१ को नरम विचार के प्रिन्स कोनोय की सरकार ने भी इस्तीफा देदिया। तब, युद्धवादी दल के, जनरल तोजो ने सरकार बनाई और ७ दिसम्बर १९४१ को जापानी सेनाओं ने बिना किसी चेतावनी के सुदूरपूर्व में अमरीकी और बरतानवी अधिकृत देशों पर आक्रमण कर पश्चिमी प्रशान्त महासागर में युद्ध छेड़ दिया। इन देशों को भुलावे में डालने और अपने युद्ध-प्रयास को पूर्ण करने की