सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१४८
त्रिराष्ट्र-सन्धि
 

नीयत से जापान-सरकार ने एक विशिष्ट दूत, प्रशान्त के सम्बन्ध में शान्ति-पूर्ण समझौता करने के लिये, वाशिंगटन भेजा था। यह दूत अभी वहीं था कि इधर जापान ने आक्रमण कर दिया। फलतः चीन और हालैन्ड ने (प्रशान्त में इसके भी अधिकृत देश थे) जापान के विरुद्ध युद्ध-घोषणा कर दी। (वास्तव मे इससे पूर्व चीन ने नियमानुकूल जापान के विरुद्ध युद्ध-घोषणा नहीं की थी)। इसके बाद ही जापान ने जर्मनी और इटली के साथ सामरिक-सन्धि करली।

जब यह पक्तियाँ छप रही हैं तोजो ही जापान की युद्ध-लिप्सा और साम्राज्यवाद के प्रतीक के रूप में ब्रिटेन, अमरीका और हालैण्ड के विरुद्ध, सुदूरपूर्व और चीन में, युद्ध का संचालन कर रहा है। तोजो शुरू से ही जर्मनी का पक्षपाती रहा है। १९१९ मे वह बर्लिन में जापान का सामरिक दूत था। उसके बाद मचूको में पुलिस का प्रधान अधिकारी रहा, जहाँ उसने अमानुषिकतापूर्वक दमन किया। उपरान्त चीन में जापानी सेना का मुख्य अधिकारी रहा। तोजो बड़ा दुराग्रही और कठोर है। जापानी उसे 'उस्तरा' कहा करते हैं।



त्रिराष्ट्र-सन्धि—२७ सितम्बर १९४० को जर्मनी, इटली और जापान के बीच, दस वर्षों के लिये, हुई सन्धि। इसके अनुसार जापान ने योरप में नवीन विधान (न्यू आर्डर) की स्थापना में जर्मनी और इटली की प्रधानता को स्वीकार किया है। इसी प्रकार जर्मनी और इटली ने एशिया में जापान द्वारा नवीन राजनीतिक-रचना में उसके नेतृत्व को माना है। सन्धि-कर्ता तीनों राष्ट्र, किसी पर भी ऐसे राष्ट्र द्वारा आक्रमण होने पर, जो वर्तमान योरपीय अथवा चीन-जापान युद्ध से सम्बन्धित नहीं है, एक-दूसरे की, पूर्ण राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक रूप से, सहायता करेंगे। सोवियत रूस के सम्बन्ध में तीनों राष्ट्रों की अपनी-अपनी नीति पर इस सन्धि का कोई प्रभाव नहीं है। यह सन्धि वास्तव में संयुक्त-राष्ट्र अमरीका के विरुद्ध की गई है, किन्तु परोक्ष रूप से यह रूस के विरुद्ध भी है। हंगरी, स्लोवाकिया और