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नवराष्ट्र-सन्धि
 


प्रकाण्ड पडित। काशी विद्यापीठ के पूर्व आचाय। सन् १९१६ में फैज़ाबाद होमरूल लीग के मंत्री रहे। सन् १९२० में, असहयोग-आन्दोलन के समय, वकालत छोड़ी और काशी-विद्यापीठ के प्राचार्य हुए। 'विद्यापीठ' नामक त्रैमासिक पत्रिका का सम्पादन किया। सन् १९३४ में पटना में अखिल भारतीय काग्रेस समाजवादी दल के सम्मेलन के सभापति चुने गये। सन् १९३६ मे काग्रेस-कार्यसमिति के सदस्य बनाये गये। देश में अनेक समाजवादी-सम्मेलनो, किसान-सम्मेलनों, तथा देश राज्य प्रजा-सम्मेलनो का सभापतित्व ग्रहण किया। सन् १९३७ मे युक्तप्रान्तीय लेजिस्लेटिव असेम्बली मे काग्रेस-सदस्य चुने गये। सन् १९३८ में आपको लखनऊ-विश्वविद्यालय की सीनेट ने वाइस-चन्सलर बनाने का निश्चय किया, परन्तु आपने इस पद को अस्वीकार कर दिया। मार्च १९३७ मे देहली काग्रेस-अधिवेशन में अपने मत्रिपद ग्रहण के विरुद्ध आन्दोलन किया। आपको सयुक्तप्रान्तीय मत्रिमण्डल का सदस्य बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किया गया, परन्तु आपने मत्रित्व ग्रहण नहीं किया। सन् १९३८ में सयुक्तप्रान्त की शिक्षा के पुनर्सगठन के लिए एक जॉच-समिति सरकार द्वारा आचार्य नरेन्द्रदेव के सभापतित्व में नियुक्त की गई। सन् १९४० में सयुक्तप्रान्तीय काग्रेस कमिटी के दुबारा प्रधान बनाये गये। किन्तु १९४१ के आरम्भ में पकडकर नजरबन्द कर दिये गये। अत्यन्त रुग्णावस्था में जेल से छूटे।

आचार्यजी समाजवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक हैं। काग्रेस-समाजवादी-दल के संगठन में उनका विशेष हाथ है। महात्मा गाधी उनका आदर और भरोसा करते हैं। आचार्यजी ने समाजवाद पर कई पुस्तके लिखी हैं। लखनऊ के समाजवादी हिन्दी साप्ताहिक ‘सघर्ष' के आप सपादक हैं। इस समय, ८ अगस्त, ४२ के बाद हुई उथल-पुथल में आपको भी रुग्णावस्था में ही पकड लिया गया।

नवराष्ट्र-सन्धि--सन् १९२३ मे यह अन्तर्राष्ट्रीय सधि चीन के सम्बन्ध में ब्रिटेन, सयुक्त-राज्य अमरीका, जापान, चीन, फ्रान्स, इटली, पुर्तगाल, वेलजियम और नीदरलैण्ड्स इन नौ राष्ट्र के बीच, हुई थी। इस सन्धि ने चीन के प्रभुत्व, उसकी स्वाधीनता तथा शासन-संबधी सगठन का दायित्वपूर्ण आश्वा-