सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६२
नागरिक-रक्षक-दल
 


अपने-अपने प्रान्तों में नशाबन्दी जारी करे और तीन साल मे पूर्णतया नशाबन्दी हो जानी चहिये।

सितम्बर, १९३७ ई० में काग्रेस-कार्यसमिति ने महात्माजी के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर काग्रेसी मत्रियों को आदेश भेजा कि वे नशाबन्दी शुरू करदें। १ अक्टूबर १९३७ को मदरास सरकार ने सबसे पहले नशाबन्दी का कार्य आरम्भ किया। प्रत्येक प्रान्त में नशाबन्दी पहले एक या दो जिलो में शुरू की गई। मदरास मे सेलम, बिहार मे सारन, सयुक्तप्रान्त मे एटा और मैनपुरी, मध्यप्रन्त मे सागर, जबलपुर, अमरावती और अकोला, सीमाप्रान्त में डेराइस्माइलग्वॉ, और बम्बई में अहमदाबाद तालुक़ा मे नशाबन्दी शुरू की गई। काग्रेस-सरकारो से प्रभावित होकर बगाल मन्त्रिमण्डल ने भी नोआखाली और चटगॉव मे नशाबदी जारी की। पीछे प्रत्येक प्रान्त मे एक-एक, दो-दो जिलों मे इस योजना को और बढाया गया। कुल सरकारी आमदनी से प्रत्येक प्रान्त की आबकारी-कर से हुई आमदनी का अनुपात इस प्रकार है:-मदरास ३९ प्रतिशत, बिहार-उडी़सा ३४ प्रति०, बम्बई २८ प्रति०, मुख्यप्रान्त २५ प्रति०, बंगाल २० प्रति०, सयुक्त-प्रान्त १२ प्रति०, पजाब ११ प्रति०। ३१ मार्च १९४३ को सयुक्तप्रान्तीय गवर्नर ने नशाबन्दी का अन्त कर दिया।

नागरिक-रक्षक-दल (सिविक गार्ड)--१६ अगस्त १९४० को भारत के गवर्नर जनरल ने नागरिक-रक्षक दल बनाने के सम्बन्ध मे आर्डिनेस जारी किया, जिसमे नागरिक-रक्षकों के विधान, सगठन तथा उनके कर्तव्यों और अधिकारों के विषय में नियम हैं। इनके अनुसार प्रत्येक प्रान्त में प्रत्येक जिला मजिस्ट्रेट तथा प्रेसीडेसी मे पुलिस कमिश्नर को नागरिक-रक्षकों का सगठन करने का अधिकार प्राप्त है। नियमों मे बताया गया है कि सिविक गार्ड व्यक्तियो तथा सम्पत्ति की रक्षा के लिये निर्धारित कार्य करेगे। ज़िला मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह नागरिक-रक्षकों के शिक्षण की व्यवस्था करे तथा जब वह किसी कार्य पर नियुक्त करने के लिए बुलाये जायॅ तब उन्हे उपस्थित होना चाहिए। जब धारा ४ के अन्तर्गत उन्हे किसी कार्य पर नियुक्त किया जाय, तब उन्हें पुलिस के सभी अधिकार, विशेषाधिकार तथा सरक्षण प्राप्त होगा। यह लोग पुलिस अफसर के नियत्रण मे रहेगे। जो नागरिक-रक्षक