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नेहरू
 


क्षेत्र में उतार लाये। १९२० मे वकालत छोडदी और सन् २०-२१ के असहयोग आन्दोलन में दो बार जेल-यात्रा की। असहयोग के अवसान के बाद प्रयाग म्युनिसिपल बोर्ड के प्रधान बनाये गये। आपने इसमें अनेक सुधार किये। १९२३ के नागपुर झडा सत्याग्रह का सगठन किया। इसी साल कोकनाडा कांग्रेस में प्रथम बार स्वयंसेवक दल का सगठन हुआ और आप उसके अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इसी साल आपको प्रथम बार कांग्रेस का प्रधान मन्त्री चुना गया।

१९२६ मे योरप गये। वहाँ साम्राज्य-विरोधी परिषद् के अधिवेशन में एक दिन आप प्रधान बनाये गये। आप रूस भी गये और वहाँ से पूर्ण प्रभावित होकर लौटे। भारत में आपने ही प्रथम बार साम्यवादी विचारधारा को प्रवाहित किया। १९२८ में भारतीय स्वाधीनता संघ की स्थापना आपके ही प्रयत्न से हुई। १९२९ मे नेहरूजी ट्रेड यूनियन काग्रेस के अध्यक्ष चुने गये और नेशनल काग्रेस के अध्यक्ष भी। लाहौर में इमी साल, आपके नेतृत्व में, पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव स्वीकार हुआ। २६ जनवरी '३० ई० को समस्त देश में प्रथम स्वाधीनता दिवस मनाया गया।

सन् १९३० में ६ मास की क़ैद की सजा मिली। जब आप जेल में ही थे, तब अपने पिता, प० मोतीलाल नेहरू, सहित--जिन्हें भी उस समय तक सज़ा दी जा चुकी थी और जो नैनी जेल में अपने पुत्र के साथ ही थे--गाधी-इर्विन-समझौते के सम्बन्ध मे, स्पेशल ट्रेन द्वारा प्रयाग से यरवदा जेल गाधीजी से परामर्श करने के लिये लेजाया गया। काग्रेस प्रेसिडेण्ट की हैसियत से, आपकी अनुमति के बिना, समझौता कैसे होता। सन् १९३२ मे, लार्ड विलिंग्डन के शासन-काल से, गाधी-इर्विन समझौता टूटने पर, आपको सयुक्त-प्रान्त के पीड़ित और त्रस्त किसानो की सुध लेने के कारण, २ वर्ष क़ैद की सजा दी गई। किन्तु माता की बीमारी के कारण, सजा पूरी होने से पेश्तर, छोड दिये गये।

सन् १९३४ मे बिहार-भूकम्प के बाद, पिछले दिनों कलकत्ते मे दिये गये किसी भाषण के कारण, 'राजद्रोह' के अपराध मे, आपको दो वर्ष की सजा दीगई। किन्तु कमलाजी की बीमारी के कारण आपको बीच में छोड़ दिया