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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/१८१

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परमानंद
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पदग्रहण की नीति स्वीकार की तब पन्तजी सयुक्त-प्रान्तीय सरकार के प्रधान-मत्रि नियुक्त किए गये। उन्होंने अपने शासन-काल(१९३७-३९)मे शिक्षा, उद्योग-व्यवसाय, क्रषि, ग्राम-देहात, निरक्षरता, जेल-शासन, शाराब-खोरी मे थोड़े सुधार किये। आप दक़ियानूसी प्रकार के राजनीतिज्ञ है। सन १९३९ के अक्टूबर मे काग्रेस के निश्चयानुसार पन्त-सरकार ने मन्त्रित्व से त्याग-पत्र दे दिया। सन १९४० के युद्ध-विरोधी सत्याग्रह मे आपको एक साल कि सज़ा मिली। सन '४२ अगस्त मे देशव्यापी दमन मे आप भी जेल भेज दिये गये।

परमानंद, भाई--दो वर्ष पूर्व तक हिन्दू महासभा के प्रथमकोटि के नेता। लाहौर की डि० ए० वी० कालिज मे अध्यापक थे। सन १९२५ मे गदर-पिर्टी-केस मे मुक़दमा चला और प्राणादण्ड कि आज्ञा दी गई। बाद मे सज़ा कालेपानी (आजन्म देश-निष्कासन) मे बदल दीगई। कालेपानी मे मनस्विता-पूर्वक विकट यातनाएँ झेलीं।दो मास तक वहाॅ भूख हडताल की। सन् १९२० के क्षमा-दान मे रिहा हुए। स्वर्गीय पंजाब-केसरी लाला लाजपतराय के साथ राष्ट्रिय-क्षेत्र मे योगदान दिया। पजाब राष्ट्रीय विद्दापीट के पीठस्थविर (चान्सलर) रहे। सन् १९२५ के


वृन्दावनवाले हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए। सन् १९३३ मे हिन्दू महासभा (अजमेर) अधिवेशन के समापति हुए। सन् १९३४ मे ज्वाइट पार्लमेंटरी कमिटी के समक्ष लन्दन मे, हिन्दू महासभा की ओर से, गवाहि देने गए। उसी वर्ष केन्द्रीय आसे-माली के चुनाव मे पंजाब से हिन्दू-महासभा की ओर से चुने गये। भाईजी पुरातन देशभक्त, हिन्दू-महासभा के प्रभावशाली नेता वक्ता तथा हिन्दी विद्वान लेखक है। हिन्दी-साप्ताहिक 'हिन्दी' के आप संपादक है।