नही किया था। बगाल-सरकार के प्रधान-मंत्री मोलवी फजलुल हक़ ने भी, जो मुस्लिम लीग कार्य-समिति के प्रभावशाली प्रमुख सदस्य रहे हैं, इस योजना का ज़ोरदार विरोध किया है। सन् १९४१ मे जो हक़-जिन्ना-पत्र-व्यवहार समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुआ था, उसमे यह स्पष्ट प्रकट होता है। हक साहब ने मि० जिन्ना को लिखा था--'कृपया कोई ऐसा हल सोचिए जिससे भारत आगे बढ़ सके। अगर आप यह सोचते हैं कि वह केवल पाकिस्तान योजना है और कुछ भी नहीं, तो आप, लोगो को बुलाकर उन्हें अपना आशय स्पष्ट क्यो नहीं कर देते ? जनता ने अभी तक न तो इसे भलीभॉति समझा है और न वह इसकी प्रशसा करने के योग्य है।"
इसका विरोध करते हुए महात्मा गाधी ने लिखा है--"मैं इसका विरोध करने में प्रत्येक अहिंसात्मक उपाय का प्रयोग करूँगा। क्योंकि इसका अर्थ होगा सदियों से असख्य मुसलमानो तथा हिन्दुओ द्वारा एक राष्ट्र की नाई साथ-साथ मिलकर रहने के प्रयत्न का सर्वनाश।" ('हरिजन' १३-४-४०)
पाकिस्तान की समस्या को क्रिप्स की योजना से बल मिला। साथ ही गत वर्ष पार्लमेन्ट में ब्रिटिश प्रधान मन्त्री मि० चर्चिल और भारत-मन्त्री मि० ऐमरी के भाषणो ने भी इस समस्या को दुरूह बनाया है। इसी योजना के आधार पर ब्रिटिश अधिकारी भारतीय सम्प्रदायो के मतैक्य के अभाव का नाम लेकर भारतीय राजनीतिक सङ्कट का कोई निपटारा नहीं कर रहे हैं। यह योजना वास्तव में हैदराबाद उसमानिया विश्वविद्यालय के प्रो० डा० सय्यद अब्दुल लतीफ के मस्तिष्क की उपज है। प्रो० लतीफ ने पहली बार, सन् १९३७ मे, इसका उल्लेख किया, जब वह विलायत मे पढ रहे थे। किन्तु डॉ० लतीफ साहब आज पाकिस्तान को उस रूप में नहीं मानते, जिसमे कि मि० जिन्ना इसे पेश करते हैं। मि० जिन्ना के पाकिस्तान के डा० लतीफ अनुयायी नही। वह समझौता नीति के पोषक और मि० जिन्ना की हठधर्मी के विरोधी हैं। अभी तक मुस्लिम-लीग ने पाकिस्तान की कोई प्रामाणिक योजना नहीं बनाई है। विविध स्वतंत्र मुसलिम लेखको ने अपने-अपने दृष्टिकोण से विचार प्रकट किये है।